एस. जयशंकर ने हाल ही में लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए विदेश मंत्री के रूप में पदभार संभाला। हालांकि विदेश मंत्री के रूप में जयशंकर का दोबारा पद संभालना चीन को पसंद नहीं आ रहा है।
चीन के कई एक्सपर्ट इस बात से घबराए हुए हैं कि अब भारत का रुख चीन को लेकर नहीं बदलेगा क्योंकि जयशंकर विदेश मंत्रालय की कुर्सी पर फिर से बैठ गए हैं।
गौरतलब है कि 69 वर्षीय जयशंकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उन वरिष्ठ नेताओं में शामिल हैं, जिन्हें पिछली सरकार में संभाले गए मंत्रालयों की ही जिम्मेदारी दी गई है।
चीन के सरकारी ‘ग्लोबल टाइम्स’ अखबार ने जयशंकर को लेकर तमाम विशेषज्ञों की राय छापी है।
इसने अपनी खबर में लिखा है कि जयशंकर के दोबारा पद संभालने के साथ चीनी विशेषज्ञों को भारत की विदेश नीति में कोई महत्वपूर्ण बदलाव की उम्मीद नहीं है।
उन्होंने आग्रह करते हुए कहा है कि भारत से उम्मीद है कि वह चीन-भारत संबंधों पर सकारात्मक संकेत भेजेगा और द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाएगा।
“भारत ने घरेलू नीतियों में चीन विरोधी कई कदम उठाए”
मंगलवार को चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग ने प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को उनके नए कार्यकाल पर बधाई संदेश भेजा था। उन्होंने कहा कि चीन द्विपक्षीय संबंधों को सही दिशा में आगे बढ़ाने के लिए भारत के साथ मिलकर काम करने को तैयार है।
चीनी प्रधानमंत्री का संदेश उसी दिन भेजा गया जिस दिन जयशंकर ने लगातार दूसरी बार भारत के विदेश मंत्री के रूप में पदभार संभाला।
उस दिन जयशंकर ने भारतीय पत्रकारों से कहा कि चीन के संबंध में भारत का ध्यान सीमा पर शेष मुद्दों को हल करने पर रहेगा।
अखबार के मुताबिक, चीनी विश्लेषकों ने बताया कि जयशंकर कई मौकों पर चीन के साथ बचे हुए सीमा मुद्दों के समाधान के लिए भारत की इच्छा को सकारात्मक रुख के साथ दोहराते रहे हैं, हालांकि इस मुद्दे को लेकर उनका लगातार अतिशयोक्तिपूर्ण रवैया कूटनीतिक संबंधों में लगातार बाधा डालता है।
सिचुआन इंटरनेशनल स्टडीज यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफेसर लॉन्ग जिंगचुन ने बुधवार को ग्लोबल टाइम्स को बताया, “चीन और भारत के बीच सीमा विवाद कोई हालिया मुद्दा नहीं है, बल्कि दशकों से मौजूद है।” उन्होंने कहा, “हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में भारत ने घरेलू नीतियों में चीन विरोधी कई कदम उठाए हैं, जिनमें चीनी कंपनियों का दमन करना, वीजा सस्पेंड करना और लोगों के बीच आदान-प्रदान को सख्ती से दबाना शामिल है। यह पूरी तरह से नकारात्मक रवैया दर्शाता है।”
भारत की विदेश नीति में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं
चीन के विशेषज्ञों का मानना है कि निकट भविष्य में भारत की विदेश नीति में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं होगा। इसके लिए वे विदेश मंत्री जयशंकर को भी जिम्मेदार मानते हैं।
उनका कहना है कि पीएम मोदी ने अपने नए प्रशासन में बड़े पैमाने पर उन्हीं वरिष्ठ अधिकारियों को बनाए रखा है जो पहले भी थे। पिछले पांच वर्षों में, भारत ने चीन के प्रति एक कठोर कूटनीतिक रुख अपनाया है। हालांकि चीन इसके पीछे अमेरिका को भी एक वजह मानता है।
अखबार ने आगे लिखा, “अभी तक, हमने चीन-भारत संबंधों को बेहतर बनाने के लिए भारत की ओर से कोई सक्रिय और व्यावहारिक इच्छा नहीं देखी है।”
ग्लोबल टाइम्स ने चीन की तारीफ करते हुए कहा कि भारत के विपरीत चीन ने संबंध सुधारने के लिए लगातार सकारात्मक संकेत भेजा है।
एक चीनी एक्सपर्ट ने कहा, “भारत से आग्रह है कि वह द्विपक्षीय संबंधों को विकसित करने में चीन के साथ मिलकर काम करे और तालमेल बनाए।” उन्होंने कहा कि अगर विदेश मंत्री के रूप में जयशंकर ने अपना एटीट्यूड (रवैया) नहीं बदला, तो चीन भी जवाबी कदम उठा सकता है।
“पड़ोसी प्रथम” नीति से चीन तो ऐतराज
जयशंकर ने पदभार ग्रहण करने के बाद भारत की “पड़ोसी प्रथम” विदेश नीति के महत्व का जिक्र किया था। हालांकि चीनी एक्सपर्ट इसे अलग ही नजरिए से देखते हैं।
उन्होंने कहा कि भारत एक तरफ पड़ोसी देशों को प्राथमिकता देता है लेकिन उनमें से कई के प्रति सम्मान नहीं दिखाता है। हालांकि चीनी विशेषज्ञ भारत के अपने पड़ोसी देशों के साथ प्रगाढ़ होते संबंधों का जिक्र करना भूल गए। भारत कई मौकों पर आपदा के समय हमेशा अपने पड़ोसियों को सबसे पहले मदद भेजने वाला देश रहा है।
राजनयिक से नेता बने एस. जयशंकर ने विदेश मंत्री के रूप में मंगलवार को अपना दूसरा कार्यकाल शुरू करने पर कहा कि ‘‘भारत प्रथम’’ और ‘‘वसुधैव कुटुंबकम’’ देश की विदेश नीति के दो मार्गदर्शक सिद्धांत होंगे।
उन्होंने कहा कि नयी सरकार का जोर, टकरावों और तनावों का सामना कर रहे विभाजित विश्व में भारत को ‘‘विश्व बंधु’’ बनाने पर होगा।
जयशंकर ने कहा, ‘‘भविष्य को ध्यान में रखते हुए, निश्चित रूप से मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री ने हमें जो दो सिद्धांत दिए हैं – भारत प्रथम और वसुधैव कुटुंबकम – वे भारतीय विदेश नीति के दो मार्गदर्शक सिद्धांत होंगे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमें पूरा विश्वास है कि हम सब मिलकर एक अशांत, विभाजित विश्व में, संघर्षों और तनावों से भरी दुनिया में विश्व बंधु के रूप में खुद को स्थापित करेंगे।’’
बहुत दमदार रहा जयशंकर का अब तक का सफर
विदेश मंत्री के रूप में वर्ष 2019 से कार्यभार संभालने वाले जयशंकर ने वैश्विक मंच पर कई जटिल मुद्दों को लेकर भारत के रुख को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने की अपनी क्षमता का आत्मविश्वास के साथ प्रदर्शन किया है।
जयशंकर ने यूक्रेन में युद्ध के मद्देनजर रूस से कच्चे तेल की खरीद पर पश्चिमी देशों की आलोचना को निष्प्रभावी करने से लेकर चीन से निपटने के लिए एक दृढ़ नीति- दृष्टिकोण तैयार करने तक प्रधानमंत्री मोदी की पिछली सरकार में अच्छा काम करने वाले अग्रणी मंत्रियों में से एक के रूप में उभरे।
उन्हें विदेश नीति के मामलों को खासकर भारत की जी-20 की अध्यक्षता के दौरान घरेलू पटल पर विमर्श के लिए लाने का श्रेय भी दिया जाता है।
वर्तमान में जयशंकर गुजरात से राज्यसभा के सदस्य हैं। जयशंकर ने (2015-18) तक भारत के विदेश सचिव, अमेरिका में राजदूत (2013-15), चीन में (2009-2013) और चेक गणराज्य में राजदूत (2000-2004) के रूप में कार्य किया है।
वह सिंगापुर में भारत के उच्चायुक्त (2007-2009) भी रहे। जयशंकर ने मॉस्को, कोलंबो, बुडापेस्ट और तोक्यो के दूतावासों के साथ-साथ विदेश मंत्रालय और राष्ट्रपति सचिवालय में अन्य राजनयिक पदों पर भी काम किया है।
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