बेटे ही क्यों करते हैं अंतिम संस्कार? शास्त्रों में बताई गई है वजह, आचार्य से जानें

हिन्दू धर्म में अंतिम संस्कार से जुड़े कई नियम हैं.मृत्यु जीवन का अंतिम और अटल सत्य है. जिसे कोई टाल नहीं सकता है. गरुड़ पुराण के अनुसार, जिसने भी इस संसार में जन्म लिया है. उसकी मृत्यु होना निश्चित है. हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार किया जाता है. जिससे जुड़ें कई नियम हैं. उन्हीं में से एक बेटे द्वारा मुखाग्नि देना. इसके पीछे भी पुराणों मे महत्व बताया गया है. उज्जैन के पंडित आनंद भारद्वाज से जानते है. बेटे ही क्यों मुखाग्नि देते है?.

शास्त्रों मे पुत्र का अर्थ विस्तार से बताया गया है. पुत्र शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है. ‘पु’ यानी नरक और ‘त्र’ यानी की त्राण. इस हिसाब से पुत्र का अर्थ हुआ नकर से तारने वाले यानी कि नरक से निकाल कर, पिता या मृतक को उच्च स्थान पर पहुंचाने वाला. इसी वजह से ही पुत्र को अंतिम संस्कार की सभी प्रक्रिया को करने का प्रथम अधिकार दिया गया है. हिन्दू धर्म मे जैसे बेटी को लक्ष्मी स्वरूप पूजा जाता है. वैसे ही पुत्र को विष्णु तत्व माना जाता है. विष्णु तत्व से यहां अर्थ है पालन पोषण करने वाला, यानी घर का वो सदस्य जो पूरे घर को संभालता है. घर के सदस्यों का भरण पोषण करता है. हालांकि अब इस जिम्मेदारी को लड़कियां भी उठाने में पूरी तरह सक्षम हैं.

जानिए कितने प्रकार के पुत्र दे सकते है मुखाग्नि
बहुत से लोगों के मन में भी कभी ना कभी यह प्रश्न भी जरूर उठा होगा. जिस व्यक्ति को पुत्र नहीं है तो क्या उसे जीवन में मोक्ष नहीं मिल सकता?. ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि हिंदू परंपराओं में महिलाओं को श्मशान घाट जाने तक की आजादी नहीं होती है. अगर किसी व्यक्ति को पुत्र नहीं है तो ऐसा नहीं है. वह अपनी पुत्री के हाथों मुखाग्नि ले सकता है. उसे उसकी पुत्री के हाथों मुखाग्नि दिया जा सकता है. इसके लिए भी हिंदू शास्त्रों में उपाय बताए गए हैं. इंसान के अपने पुत्र के अलावा और मानस पुत्र, गोद लिया हुआ पुत्र, पुत्री का पुत्र, खरीदा हुआ पुत्र, भाई का पुत्र सहित 12 प्रकार के पुत्र होते हैं. इनमें से किसी के द्वारा भी मुखाग्नि देने पर इंसान को मोक्ष मिल सकता है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *