चीन के कई डिप्लोमैट्स ने पिछले महीने नागपुर में स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय का दौरा किया था।
यह दौरा अहम है क्योंकि चीन की आरएसएस तीखी आलोचना करता रहा है और अकसर सरकार को उसकी विस्तारवादी नीति से बचने की सलाह देता है।
चीन के डिप्लोमैट्स का यह किसी हिंदूवादी संगठन के दफ्तर या प्रतिष्ठान का पहला दौरा है। आरएसएस के मुख्यालय में ही हेडगेवार स्मृति मंदिर भी है, जो प्रथम सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के नाम पर है।
रिपोर्ट के मुताबिक आरएसएस के एक अधिकारी ने भी चीनी राजनयिकों के दौरे की पुष्टि की है।
यूरोपीय देशों के डिप्लोमैट्स आरएसएस के अधिकारियों से मिलते रहे हैं, लेकिन यह पहला मौका है, जब कम्युनिस्ट शासन वाले चीन के राजनयिकों ने यह दौरा किया है।
ये लोग दिसंबर के पहले सप्ताह में आरएसएस के ऑफिस पहुंचे थे। हालांकि इनकी संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात नहीं हो सकी क्योंकि वह बाहर कहीं प्रवास पर थे।
चीन के इन राजनयिकों में ज्यादातर मिडिल रैंक के थे, जो दिल्ली और मुंबई में तैनात हैं। चीनी राजनयिकों का संघ के ही एक बड़े अधिकारी ने स्वागत किया और उन्हें पूरे परिसर में घुमाया था।
महाराष्ट्र में ही स्थिति महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय का भी इन लोगों ने दौरा किया। इस संस्थान से चीनी भाषा के कुछ कोर्स भी संचालित होते हैं।
हालांकि उनका संघ दफ्तर जाने का प्लान ही अहम था। गौरतलब है कि 2020 में विजयादशमी के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने गलवान में हुई झड़प का जिक्र किया था।
उन्होंने कहा था कि भारत को चीन से निपटने के लिए सीमा पर अपनी ताकत बढ़ाने की जरूरत है। हालांकि उन्होंने भारत सरकार के प्रयासों की कई बार तारीफ भी की है। बताया जा रहा है कि चीन के राजनयिकों की यह विजिट सामान्य ही थी और उन्होंने संघ के कामकाज को समझा और परिसर का दौरा किया।