किसके सिर सजेगा दिल्ली का ताज?: राजधानी को मिल सकता है पहला SC CM, आतिशी भी रेस में; खुलेगी कुलदीप की किस्मत!

दिल्ली को अनुसूचित जाति का पहला मुख्यमंत्री मिल सकता है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के एलान के बाद आप इस समुदाय से आने वाले कुलदीप कुमार पर दांव लगा सकती है। जानकारों को मानना है कि आप अगर इस रणनीति पर आगे बढ़ती है तो राष्ट्रीय स्तर पर इसका बड़ा सियासी संदेश जाएगा। खासतौर से हरियाणा और महाराष्ट्र में। वहीं, दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस फैसले का असर पड़ने की संभावना है। पार्टी सूत्र बताते हैं कि नए सीएम की दौड़ में मौजूदा मंत्री आतिशी व सौरभ भारद्वाज भी शामिल हैं। शीर्ष नेतृत्व ने अभी अपने सभी विकल्प खुले रखे हैं। अगले दो दिन में आप संभावित विकल्पों में से सबसे बेहतर का चुनाव करेगी।पार्टी रणनीतिकार मानते हैं कि राष्ट्रीय स्तर की पार्टी आप दिल्ली व पंजाब के बाद दूसरे राज्यों में अपनी पकड़ मजबूत करने की दिशा में संजीदगी से काम कर रही है। हरियाणा विधानसभा चुनाव अभी प्राथमिकता में है। वहीं, नवंबर में महाराष्ट्र में भी चुनाव होने हैं। दोनों राज्यों में अनुसूचित जाति के वोटर बड़ी संख्या में हैं। हरियाणा में इस समुदाय के 21 फीसदी मतदाताओं के साथ 17 सीटें आरक्षित हैं। वहीं, महाराष्ट्र में आरक्षित सीटों की संख्या 29 है और एससी के करीब 13 फीसदी वोटर हैं। ऐसे में दिल्ली में इसी समुदाय का मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी मजबूती से अपना पक्ष रखेगी। वहीं, लोकसभा चुनावों में दिल्ली की आरक्षित सीटों पर कमतर प्रदर्शन करने वाली आप को इसका फायदा दिल्ली चुनावों में भी होगा।

माना जा रहा है कि दिल्ली में फरवरी में चुनाव होने हैं। ऐसे में नए मुख्यमंत्री की शासनिक से ज्यादा अहमियत सियासी होगी। अगले पांच महीने में उसको चुनावी मोड में ही काम करना होगा। इस बीच संयोजक अरविंद केजरीवाल समेत आप के सभी वरिष्ठ नेता जनता के बीच होंगे। इससे नए मुख्यमंत्री के अनुभव या अनुभवहीनता का ज्यादा असर आप और उसकी सरकार की छवि पर नहीं पड़ेगा। इसमें आप को नुकसान होने का अंदेशा कम है।

एक भी मुख्यमंत्री एससी से नहीं

दिल्ली में 1952 से अभी तक सात मुख्यमंत्री बन चुके हैं। पहले मुख्यमंत्री ब्रह्म प्रकाश यादव समुदाय से आते थे। दूसरे मुख्यमंत्री गुरमुख निहाल सिंह सिख समुदाय से थे। उसके बाद 1993 में मदन लाल मुख्यमंत्री बने पंजाबी थे। फिर साहिब सिंह वर्मा, सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित और अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने। इनमें से कोई एससी चेहरा नहीं था।

लोकसभा चुनावों में आप ने एससी कार्ड खेला भी था। पूर्वी दिल्ली की सामान्य सीट से अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले आप विधायक कुलदीप कुमार पर दांव चला था। वह अरविंद केजरीवाल के भरोसेमंद होने के साथ वाल्मीकि समुदाय से आते हैं। ऐसे में उनके चेहरे पर भी आप दांव लगा सकती है। वहीं, 12 आरक्षित सीटों के दूसरे 11 विधायक भी अपने स्तर पर काम कर रहे हैं।

आतिशी की भी मजबूत दावेदारी

सूत्रों की माने तो आतिशी पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भरोसा करते हैं। उनके पास सरकार में रहने का अनुभव भी है। तिहाड़ जेल में जाने के बाद दिल्ली सरकार से जुड़े सभी फीडबैक भी केजरीवाल ने आतिशी से लिया था। साथ ही 15 अगस्त पर तिरंगा फहराने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उन्हीं का नाम आगे किया था। रविवार अपने भाषण में भी केजरीवाल ने जिक्र किया कि तिरंगा फहराने के लिए जेल से लिखी गई इकलौती चिट्ठी उपराज्यपाल तक नहीं पहुंच सकी। दूसरी तरफ दिल्ली की महिलाओं को हर माह एक हजार रुपये देने की महिला सम्मान योजना को भी मंत्री आतिशी ही देख रही हैं। संभव है कि नई सरकार बनने के बाद पहला फैसला इस योजना को लागू करने का हो। ऐसे में मुख्यमंत्री की नजर में आतिशी भी एक प्रमुख दावेदार हो सकती हैं। इसके अलावा सौरभ भारद्वाज का नाम भी चर्चा में है।

दो दिन में सहमति

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा देने के लिए दो दिन का समय मांगा है। सूत्रों का कहना है कि नया सीएम बनने से नेताओं के भीतर खींचतान हो सकती है। इसे रोकने के लिए दो दिन में पार्टी नेतृत्व अपने नेताओं से सहमति बनाएगा। हालांकि, मंत्री आतिशी ने कहा कि सोमवार को भी छुट्टी है। ऐसे में मुख्यमंत्री मंगलवार इस्तीफा देंगे।

कुर्सी छोड़ने के खतरे भी कम नहीं….10 साल में दो बार हुई रार

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से पहले बीते 10 साल में दो मुख्यमंत्री भी अपने विधायक को मुख्यमंत्री का पद सौंप चुके हैं। इनमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने चंपई सोरेन ने को अपनी कुर्सी सौंपी दी। बाद में जब दोनों मुख्यमंत्रियों को पार्टी ने पद छोड़ने काे कहा तो इन्होंने इंकार कर दिया। इसी को देखते हुए कयास इस बात के भी हैं कि इस रणनीति के अपने खतरे भी हैं। अगर आप के किसी तेजतर्रार नेता को मुख्यमंत्री बनाया गया तो कहीं वह भी बिहार और झारखंड की राह पर न चल पड़े।

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