देश भर में राजनीतिक दल और कई सामाजिक संगठन जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं।
बिहार में तो नीतीश कुमार जब आरजेडी के साथ सरकार चला रहे थे, उसी समय उन्होंने जातिगत जनगणना करा दी थी।
इसके बाद से ही वह पूरे देश में ऐसा करने की मांग कर रहे हैं। इसके अलावा गठबंधन के एक और सहयोगी चिराग पासवान भी ऐसी मांग करते रहे हैं।
यूपी से अनुप्रिया पटेल, संजय निषाद और ओपी राजभर भी यह दोहरा चुके हैं। इस बीच एनडीए सरकार के सबसे बड़े गठबंधन सहयोगी टीडीपी ने भी यह मांग दोहरा दी है।
भाजपा का मातृ संगठन आरएसएस भी इसके पक्ष में बात रख चुका है। संघ का कहना था कि ऐसा किया जा सकता है, बस राजनीतिक इस्तेमाल न हो।
तेलुगु देशम पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में जातिगत जनगणना को जरूरी बताया है। उन्होंने कहा कि कास्ट सेंसस होनी चाहिए। यह जनता की भावना है और इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
नायडू ने कहा, ‘आप जातिगत जनगणना कराएं। फिर आर्थिक विश्लेषण करें। स्किल सेंसस करें। इससे आपको पता चलेगा कि किसकी क्या स्थिति है और फिर उसके आधार पर आर्थिक गैर-बराबरी दूर करने में मदद मिलेगी।’
नायडू ने कहा कि जनभावना है कि जातिगत जनगणना होनी चाहिए। यदि ऐसा है तो फिर उसका सम्मान जरूरी है।
यह बात सही है कि देश में गरीबी सबसे बड़ा मुद्दा है। यहां तक कि आप निचली जाति से हैं और पैसे वाले हैं तो लोग आपका सम्मान करेंगे।
समाज में आपकी इज्जत होगी। लेकिन आप भले ही ऊंची जाति के हैं, लेकिन गरीब हैं तो फिर कोई आपको महत्व नहीं देगा। यह सच्चाई है।
इसलिए आर्थिक स्थिति ही समानता का सबसे बड़ा पैमाना है। इसलिए आपको समाज में संतुलन के लिए आर्थिक गैर-बराबरी खत्म करने के लिए ही काम करना होगा।
बता दें कि आरएसएस ने अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की मीटिंग के बाद जातिगत जनगणना को लेकर सधा हुआ जवाब दिया था।
संघ का कहना था कि यदि समाज को ऐसा लगता है तो कराई जा सकती है, लेकिन इसका प्रयोग राजनीतिक लाभ के लिए नहीं होना चाहिए। इससे समाज में वैमनस्यता बढ़ती है।
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