लोक आस्था का महापर्व छठ धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह पर्व साल में दो बार होता है? एक बार कार्तिक माह में और दूसरा चैत्र माह में. इन दोनों पर्वों के बीच कुछ अंतर और समानताएं होती हैं. इस पर विस्तार से जानकारी देते हुए कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष डॉ. कुणाल कुमार झा ने लोकल 18 से चर्चा की. डॉ. कुणाल झा बताते हैं कि मास की व्यवस्थाओं के अनुसार, गणना का प्रारंभ चैत्र मास से माना जाता है. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को विक्रम संवत का प्रारंभ भी होता है और वसंत ऋतु की शुरुआत मानी जाती है. इसी काल में त्रेता युग में भगवान राम का राज्याभिषेक भी हुआ था.
सूर्य षष्ठी व्रत के रूप में मनाए जाने वाले इस पर्व में सूर्य की आराधना को विशेष महत्व दिया गया है, क्योंकि भगवान राम ने स्वयं सूर्य की उपासना की थी. वहीं, कार्तिक मास का महत्व स्नान, साधना और धार्मिक अनुशासन के कारण और बढ़ जाता है. मिथिलांचल के लिए यह पर्व विशेष है, जहां सूर्य षष्ठी व्रत को धूमधाम से मनाया जाता है. कार्तिक मास के दौरान सिमरिया में कल्पवास का आयोजन भी होता है, जो मिथिलांचल क्षेत्र में अत्यंत प्रसिद्ध है.
बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है व्रत
मिथिलांचल में सूर्य और अन्य देवताओं की पूजा, विशेष रूप से बिना भगवान विष्णु का संकल्प लिए पूरी नहीं होती. वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु का आगमन होता है, जिससे मौसमी बीमारियों का प्रकोप बढ़ सकता है. ऐसे में सूर्य की आराधना स्वास्थ्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण मानी गई है. मिथिलांचल में इस व्रत को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है, और यह परंपरा लोगों की आस्था का प्रतीक बन चुकी है.