पेरिस जलवायु समझौते पर अब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सफाई दी है। उनका कहना है कि उनके प्रशासन ने 2017 में ऐतिहासिक पेरिस जलवायु समझौते में शामिल नहीं होने का फैसला इसलिए किया क्योंकि यह धोखाधड़ी थी और इससे वाशिंगटन को एक खरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता। उन्होंने यह भी दावा किया कि भारत, चीन और रूस इसके लिए भुगतान नहीं कर रहे थे। अमेरिका में इस साल पांच नवंबर को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होना है। शुक्रवार को अमेरिका में पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट (बहस) हुई। इसी दौरान रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने पेरिस जलवायु समझौते से संबंध में यह दावा किया। मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कई और मुद्दों को लेकर एक दूसरे को घेरा। उम्मीदवारों ने सीमा, विदेश नीति, अर्थव्यवस्था, गर्भपात, राष्ट्रीय सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन की स्थिति पर भी बहस की। 90 मिनट चली बहस के दौरान 78 वर्षीय ट्रंप ने दावा किया कि पेरिस जलवायु समझौते पर एक खरब अमेरिकी डॉलर खर्च होते और अमेरिका एकमात्र ऐसा देश है, जिसे इसकी कीमत चुकानी पड़ती। उन्होंने इसे धोखा बताते हुए कहा कि चीन, भारत और रूस इसका भुगतान नहीं कर रहे थे।
क्या है 2015 का समझौता
बता दें, 2015 में हुए पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका 2017 में बाहर हो गया था। उसने इस समझौते से यह कहते हुए नाता तोड़ लिया था कि वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय समझौता अमेरिकी श्रमिकों के लिए हानिकारक है। पेरिस समझौते के रूप में साल 2009 में अमेरिका और अन्य विकसित देशों ने सामूहिक रूप से 2020 तक हर साल 100 अरब डॉलर का योगदान देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की थी, ताकि गरीब, विकासशील देशों, मुख्य रूप से वैश्विक दक्षिण में, समुद्र के स्तर में वृद्धि और बढ़ती गर्मी जैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने में मदद की जा सके। विकसित देशों ने 2022 में दो साल देर से अपने सामूहिक लक्ष्य को पूरा किया, लेकिन यह आंकड़ा कभी भी उतना ऊंचा नहीं रहा जितना कि ट्रंप ने सुझाव दिया था। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप ने जो कहा उसके उलट अमेरिका ने कभी भी अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त में 1,000 अरब डॉलर का भुगतान नहीं किया है। ट्रंप द्वारा पेरिस समझौते से देश को अलग करने के बाद अमेरिका ने वैश्विक वित्त लक्ष्य के लिए कुछ भी भुगतान नहीं किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रपति बाइडन ने अमेरिका से सालाना 11.4 अरब डॉलर देने का वादा किया है, लेकिन इस स्तर की फंडिंग नहीं हुई है। जलवायु परिवर्तन को लेकर संदेह रखने वाले ट्रंप लगातार यह दलील देते रहे हैं कि पेरिस समझौते से चीन और भारत जैसे देशों को सबसे ज्यादा फायदा हो रहा है। चीन दुनिया का सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक है, जिसके बाद अमेरिका, भारत और यूरोपीय संघ हैं।