विजयपुर की हार से कमजोरियां उजागर

भोपाल । मप्र में दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में मुकाबला 50-50 का रहा। एक सीट बुधनी पर जहां भाजपा की जीत हुई, तो वहीं दूसरी सीट विजयपुर पर कांग्रेस ने अपना कब्जा जमा लिया। यानी मामला बराबरी का नजर आ रहा है, लेकिन विजयपुर में भाजपा प्रत्याशी को मिली हार से कई कमजोरियां उजागर हुई है। वहीं यह तथ्य भी सामने आया है कि रामनिवास रावत के पुराने कार्यकर्ताओं और आदिवासियों ने उनका साथ नहीं दिया।उपचुनाव में विजयपुर हॉट सीट थी। दरअसल, यहां से कोई सामान्य प्रत्याशी नहीं बल्कि वन मंत्री रामनिवास रावत मैदान में थे। वे इसी सीट पर कांग्रेस से छह बार विधायक रहे और भाजपा उन्हें तोडक़र लाई थी इसलिए माना जा रहा था कि उनका अपना भी काफी प्रभाव होगा, हालांकि वह उपचुनाव में दिखाई नहीं दिया। इसके अलावा यहां भाजपा को स्वयं की कई कमजोरियां भारी पड़ गईं। मतदान तक भी पार्टी कार्यकर्ता रामनिवास रावत को भाजपा का नहीं मान पाए। भाजपा के स्थानीय बड़े आदिवासी नेता व पूर्व विधायक सीताराम आदिवासी, बाबूलाल मेवरा सहित अन्य ने भी खुलकर साथ नहीं दिया। रामनिवास रावत ने भी भाजपा के बजाय अपनी ही टीम पर ज्यादा भरोसा किया। वहीं, कांग्रेस को प्रत्याशी चयन में आम सहमति, जातीय समीकरण को साधने और एकजुट होकर चुनाव लडऩे का लाभ मिला।

भाजपा के पास नहीं था विकल्प
दरअसल, विजयपुर सीट पर भाजपा के पास प्रत्याशी को लेकर कोई विकल्प ही नहीं था। रामनिवास रावत को विधायक न रहते हुए भी मंत्री बनाया गया। उनके हिसाब से प्रशासनिक जमावट की गई और विकास कार्यों के लिए खजाने का मुंह भी खोल दिया। सीताराम आदिवासी की नाराजगी को कम करने और आदिवासियों को संदेश देने के लिए उन्हें सहरिया विकास प्राधिकरण का उपाध्यक्ष बनाकर मंत्री दर्जा दिया गया। विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर और मुरैना से सांसद शिवमंगल सिंह तोमर ने मोर्चा संभाला। मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने जमकर प्रचार किया। इन इलाकों में रात्रि विश्राम कर समीकरण साधने का प्रयास किया। हर वो काम भाजपा ने विजयपुर में किया, जिससे रामनिवास की जीत सुनिश्चित हो सके पर वे कार्यकर्ताओं का भरोसा जीतने में असफल रहे। विधायक न बन पाने के कारण उन्होंने वन मंत्री के पद से इस्तीफा भी दे दिया। उधर, विधानसभा व लोकसभा चुनाव और फिर अमरवाड़ा सीट के उपचुनाव में हार मिलने के बाद कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में निराशा थी। बुधनी और विजयपुर सीट के उपचुनाव पार्टी के लिए कार्यकर्ताओं में जान फूंकने और फिर मुकाबले में आने का माध्यम भी थे। बुधनी में जीत की संभावना कम ही थी फिर भी अनुभवी नेता राजकुमार पटेल पर दांव लगाकर कांग्रेस ने मुकाबला कांटे का बना दिया। पार्टी को जोर विजयपुर पर अधिक था क्योंकि कांग्रेस यहां रामनिवास रावत को सबक सिखाने के लिए भी मैदान में थी।

नरेंद्र सिंह की रणनीति फेल
विजयपुर विधानसभा में हुए उपचुनाव के प्रमुख रणनीतिकार के रूप में अप्रत्यक्ष रूप से नरेंद्र सिंह तोमर थे। मुख्यमंत्री ने आदिवासियों को साधने के लिए सीताराम आदिवासी को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया। विजयपुर के विकास के लिए सरकार का खजाना खोल दिया। क्षेत्र के आदिवासियों सहित सभी वर्गों को साधने के लिए रात्रि विश्राम सहित लगातार प्रवास कर सभाएं को की, लेकिन आदिवासियों को रिझाने में नाकाम रहे।केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने व्यक्तिगत नााराजगी के कारण उपचुनाव से दूरी बनाकर रखी थी। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने समूचे संगठन को चुनाव में लगा दिया था। वहीं विजयपुर की जीत से कांग्रेस और प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी को भी बल मिला है। स्थानीय कार्यकर्ताओं की पसंद पर वर्ष 2023 में निर्दलीय चुनाव लडऩे वाले मुकेश मल्होत्रा को टिकट दिया गया। मुरैना से चुनाव लडऩेे वाले सत्यपाल सिंह सिकरवार और विधानसभा में उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे ने मैदानी मोर्चा संभाला। आदिवासियों के बीच विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार पहुंचे तो पटवारी ने कार्यकर्ताओं में जोश फूंकने का काम किया। इस जीत से पटवारी की टीम के गठन को लेकर जो विरोध के स्वर उभर रहे थे, वे भी मंद पड़ेंगे।

कांग्रेस माहौल बनाने में रही सफल
विजयपुर उपचुनाव में मिली कांग्रेस की जीत को लेकर ही कहा जा सकता है कि कांग्रेस अपना माहौल बनाने में कामयाब रही। कांग्रेस ने उपचुनाव के पहले विजयपुर में नए अफसर के ट्रांसफर का मुद्दा जोर-जोर से उठाया और कांग्रेस इस मुद्दे को भुनाने में सफल रही। दूसरा मुद्दा मतदान वाले दिन क्षेत्र में हुई दबंगई की घटनाओं को भी कांग्रेस ने जोर शोर से उठाया और उसे भी भुनाने में कांग्रेस सफल रही। भाजपा प्रत्याशी रामनिवास रावत ने मंत्री बनने  के बाद सौगातों का पिटारा खोला लेकिन जनता को यह भी रास नहीं आया। भाजपा ने मंत्री दर्जा देकर सीताराम आदिवासी की नाराजगी दूर करने का प्रयास किया, लेकिन भाजपा की यह रणनीति भी काम नहीं आई। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, राज्यसभा सदस्य अशोक सिंह, नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार व जयवर्धन सिंह ने विजयपुर उपचुनाव में रामनिवास रावत को हराने के लिए कांग्रेस की पूरी ताकत लगा दी थी।एक-एक मतदान केंद्र पर अंचल के बड़े नेताओं की ड्यूटी लगाई थी। कांग्रेस विधायक डॉ. सतीश सिकरवार व उनके अनुज पूर्व विधायक सत्यपाल सिकरवार नीटू ने भी लोकसभा चुनाव हार का बदला लेने के लिए केंप किया था।एक बार फिर कांग्रेस ने बता दिया है कि अगर एकजुटता से आज भी परिणाम बदलने में सक्षम हैं.

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