भारत के पुरातन ज्ञान को नूतन संदर्भ में शिक्षा में समावेश करने की है आवश्यकता : उच्च शिक्षा मंत्री परमार

भोपाल : उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री श्री इन्दर सिंह परमार ने भोपाल के बरकतउल्ला विश्वविद्यालय परिसर स्थित ज्ञान विज्ञान भवन में "भारतीय ज्ञान परंपरा और शोध अनुसंधान" विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय शोध कार्यशाला में कहा कि भारत का ज्ञान विश्व मंच पर सबसे पुरातन और सर्वश्रेष्ठ ज्ञान है। यह ज्ञान परम्परा एवं मान्यता के रूप में भारतीय समाज में सर्वत्र विद्यमान है। शोध एवं अनुसंधान के आधार पर भारतीय ज्ञान परम्परा एवं मान्यता स्थापित हुई हैं। हर विधा-हर क्षेत्र में भारतीय ज्ञान परम्परा के युगानुकुल एवं वर्तमान वैश्विक आवश्यकतानुरूप, पुनः शोध एवं अनुसंधान कर दस्तावेजीकरण करने की आवश्यकता है। शिक्षा में भारतीयता के भाव के समावेश और समाज में श्रेष्ठ नागरिक निर्माण के लिए भारतीय ज्ञान परम्परा को शिक्षा में समाहित करने के लिये कार्यशालाओं एवं संगोष्ठियों का आयोजन प्रासंगिक, महत्वपूर्ण और अत्यंत उपयोगी है। श्री परमार ने "राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020के परिप्रेक्ष्य में भारतीय ज्ञान परम्परा समावेशी शिक्षा" के आलोक पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020भारत को स्वत्व के भाव के साथ विश्वमंच पर सिरमौर बनने के लिए प्रेरित करती है। इसके लिए हमें अपने गौरवशाली इतिहास, शौर्य, पराक्रम एवं उपलब्धियों पर गर्व का भाव जागृत करने की आवश्यकता है।

उच्च शिक्षा मंत्री श्री परमार ने कहा कि वर्तमान परिदृश्य में विश्व को भारत पर गर्व है। विश्वभर के भारतवंशी, भारत को संकल्पों के साथ प्रगतिपथ पर आगे बढ़ता देख गौरवान्वित हैं। हमें भी देश की श्रेष्ठ परम्पराओं, त्याग एवं बलिदान आदि से प्रेरणा लेकर, विश्वगुरु भारत की संकल्पना को साकार करने में सहभागिता सुनिश्चित करनी होगी। उन्होंने  कहा कि भारत के पुरातन ज्ञान को नूतन संदर्भ में शिक्षा में समावेश करने की आवश्यकता है। शैक्षणिक संस्थानों में भारतीय ज्ञान परम्परा पर शोध और अनुसंधान के लिए वातावरण तैयार करना होगा। मंत्री श्री परमार ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा से समृद्ध शिक्षा के लिए विश्वविद्यालय नवाचार, शोध एवं अनुसंधान के केंद्र बनेंगे। श्री परमार ने कहा कि भारत संपन्न और समृद्ध देश रहा है, इसलिए ऐतिहासिक कालखंडों में अंग्रेजों समेत सभी विदेशी आक्रांता भारत को लूटने आए थे। अंग्रेजों के आंकड़ों के अनुसार भारत 90प्रतिशत साक्षरता वाला देश था, यहां 7लाख से ज्यादा समाज द्वारा संचालित गुरुकुल थे। अंग्रेजों ने भारत की संस्कृति और शिक्षा को मिटाने का कुत्सित प्रयास किया, लेकिन राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020के लागू होने से शिक्षा में भारतीय दर्शन और चिंतन पुनः जीवंत हो रहा है। मंत्री श्री परमार ने कहा कि भारत के "वसुधैव कुटुंबकम्" के भाव में हमेशा से विश्व एवं लोक-कल्याण विद्यमान रहा है। भारतीय समाज आदिकाल से ही वृक्षों, नदियों एवं सूर्य आदि का पूजक समाज रहा है। सूर्य की ऊर्जा पर शोध करते हुए वर्ष 2047तक भारत ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर देश होगा और दूसरे देशों में ऊर्जा आपूर्ति करने में सक्षम होगा। मंत्री श्री परमार ने कहा कि वर्तमान वैश्विक तापमान वृद्धि के नियंत्रण एवं प्रकृति संरक्षण के लिए वृक्षारोपण आज की आवश्यकता है। इसके लिए उच्च शिक्षा विभाग ने "विद्यावन" के रूप में नवाचार किया है। "विद्यावन" विद्यार्थियों को सामाजिक एवं नैतिक दायित्व का बोध कराने की अभिनव पहल है।

मंत्री श्री परमार ने कार्यशाला की सार्थकता एवं सफलता और शोध-अनुसंधान के क्षेत्र में उज्ज्वल भविष्य के लिए विद्यार्थियों को शुभकामनाएं दी। उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर में पौधरोपण कर विद्यार्थियों एवं उपस्थित जनसमूह को प्रकृति संरक्षण में सहभागिता सुनिश्चित करने का आह्वान किया।

हिन्दी ग्रंथ अकादमी के संचालक श्री अशोक कड़ेल ने कहा कि बौद्धिक के साथ साथ श्रेष्ठ व्यक्तित्व निर्माण, राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020का उद्देश्य है। इसके लिए शिक्षा नीति का विशेष ध्यान शोध एवं अनुसंधान में है। विद्यार्थियों में तार्किकता का विकास, चिंतन की दृष्टि और वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए भारतीय ज्ञान परम्परा पर शोध एवं अनुसंधान किया जा रहा है।

बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के कुलगुरू प्रो. एस के जैन ने कहा कि शोध एवं अनुसंधान के लिए, शोधार्थियों के लिए विश्वविद्यालय के द्वार सदैव खुले हुए हैं। कार्यशाला की अवधारणा संयोजिका प्रो. रुचि घोष ने प्रस्तुत की और  कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. पवन मिश्र ने किया। कुलसचिव डॉ. आई. के. मंसूरी ने आभार व्यक्त किया। विविध विशेषज्ञ, शिक्षाविद, शोधार्थी, प्राध्यापक, विद्यार्थी एवं विश्वविद्यालय के अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित रहे।
 

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