प्रदेश में डेंगू का डंक, डेढ़ माह रहेगा भारी संकट

भोपाल । बारिश के साथ ही प्रदेश में भी डेंगू बेकाबू होता जा रहा है। हालात यह हैं कि सरकारी तो ठीक है, निजी अस्पतालों में सर्वाधिक मरीज भर्ती हो रहे हैं। डेंगू का डंक कितना खतरनाक हो रहा है, इससे ही समझा जा सकता है कि एक माह में में ही मरीजों का आंकड़े में 445 संख्या बढ़ गई। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जुलाई में 505 डेंगू के मरीज सामने आए थे, जबकि अगस्त में बढकऱ 950 हो गए। सितंबर में पहले आठ दिन में प्रदेश में डेंगू से प्रभावित रोगियों की संख्या छह सौ से अधिक हो गई है। यह तो वे आंकड़े हैं, जिन्हें सरकार ने माना है, जबकि इससे कई गुना अधिक तो ऐसे आंकडं़े हैं, जो रिकार्र्ड में ही दर्ज नही हैं। इसके बाद भी सरकारी अमला साफ साफइ और पानी भराव के मामलों में रुचि नहीं ले रहा हैं, जबकि डेंगू के मच्छर इसी वजह से बढ़ते हैं।
बताया जा रहा है कि मौसम खुलने पर मच्छरों की संख्या बढऩे से मामले और तेजी से बढ़ सकते हैं। इस बीमारी से सितंबर में तीन रोगियों मौत हुई है। हालांकि, एलाइजा रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं होने के कारण स्वास्थ्य विभाग इन्हें संदेहास्पद मान रहा है। सरकारी आंकड़ों की माने तो, इस वर्ष सबसे अधिक मामले इंदौर में मिल रहे हैं।  इसके बाद ग्वालियर और रीवा में सबसे अधिक मरीज मिल चुके हैं। जनवरी से अब तक 2800 केस आ चुके हैं। इंदौर और रीवा में पिछले वर्ष इसी अवधि की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक मामले देखने को मिले हैं।

रैपिड किट की जांच को नहीं मानती सरकार
केंद्र सरकार के दिशा-निर्देश के अनुसार, रैपिड किट से होने वाली जांच में रोगी के संक्रमित पाए जाने के बाद भी उसे पीडि़त नहीं माना जाता। नगरीय निकाय और स्वास्थ्य विभाग भी उन्हीं पीडि़तों के घर के आसपास मच्छरों के रोकथाम की कार्यवाही करता है, जो एलाइजा जांच में पॉजिटिव आते हैं, ना कि रैपिड किट से। निजी अस्पतालों में अधिकतर जांच रैपिड किट से की जा रही है । इससे पॉजिटिव आने वाले रोगियों को सरकार संक्रमितों में भी शामिल नहीं करती। इन्हें भी मिला लिया जाए तो प्रदेश में डेंगू मरीजों की संख्या सरकारी आंकड़ों से लगभग डेढ़ गुना हो सकती है। एक कमी यह भी है कि वायरस की जेनेटिक संरचना में बदलाव की जांच आधार पर संबंधित वर्ष में मरीज बढऩे का अनुमान भी विभाग नहीं लगा पा रहा है।

अभी राहत की उम्मीद नहीं
डेंगू के मरीज बढऩे की सबसे बड़ी वजह यह है कि इसका वायरस अपनी जेनेटिक संरचना में कुछ बदलाव कर लेता है। डेन-एक से लेकर तीन-चार तक चार तरह के वायरस होते हैं। इनके सब टाइप भी मिलते हैं। उनमें भी परिवर्तन आता है। इसी कारण किसी वर्ष या बीमारी घटती है और कभी बढ़ जाती है। दूसरा बड़ा कारण बारिश का पैटर्न होता है। इसी कारण सितंबर में सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं। इसके अतिरिक्त सितंबर में जो मच्छर पैदा होते हैं, वह अक्टूबर तक संक्रमित करते हैं, इस कारण अगले माह भी संक्रमण घटने के आसार कम हैं।

यह हैं सर्वाधिक प्रभावित जिले (एक जनवरी से आठ सितंबर 24 तक के मामले)
जिला इस वर्ष पिछले वर्ष
मामले इसी अवधि में
इंदौर 314 107
ग्वालियर 285 108
रीवा 267 86
भोपाल 203 183
जबलपुर 184 62
विदिशा 177 98
सिवनी 164 27
छिंदवाड़ा 149 11

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