जबलपुर । मप्र हाईकोर्ट ने नवंबर 2023 में हाईकोर्ट में सात जजों की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका निरस्त कर दी है। एक्टिंग चीफ जस्टिस शील नागू व अमरनाथ केशरवानी की युगलपीठ ने सुरक्षित अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों को रेखांकित करके व्यक्त किया है कि कॉलेजियम की भारत के संविधान में भले ही कोई व्यवस्था नहीं की गई है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से कॉलेजियम व्यवस्था प्रचलन में है। इसे संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत देश की सम्पूर्ण न्यायपालिका एवं विधायिका मानने को बाध्य है। उक्त मत के साथ न्यायालय ने दायर याचिका खारिज कर दी। जबलपुर निवासी अधिवक्ता मारुति सोंधिया व उदय साहू की तरफ से दायर याचिका में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम पर जातिवाद और वर्गवाद का आरोप लगाया गया था। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया था कि हाईकोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा संविधान में निहित सामाजिक न्याय तथा आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को नजर अंदाज करके एक ही जाति, वर्ग तथा परिवार विशेष के ही अधिवक्ताओं के नाम जज बनाने के लिए भेजे जाते हैं। यह संविधान के अनुच्छेद 13,14, 15,16 एवं 17 के प्रावधानों तथा भावना के विपरीत है। न्यायपालिका में सभी वर्गों का अनुपातिक प्रतिनिधित्व होना आवश्यक है। इस संबंध में करिया मुंडा कमेटी की रिपोर्ट स्पष्ट रूप से व्याख्या करती है कि हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में एक जाति वर्ग विशेष के ही जजों की नियुक्ति होने से बहुसंख्यक समाज के लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों वंचित किया जा रहा है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया था कि आजादी से लेकर आज तक मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में एक भी एससी तथा एसटी का जज नहीं बनाया गया है। इतना ही नहीं मप्र हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम में भी आरक्षित वर्ग का एक भी प्रतिनिधि नहीं है। याचिका में आरोप लगाया गया था कि कॉलेजियम द्वारा मनमाने रूप से अपने चहेतों को उपकृत करने के लिए जज के लिए नाम की अनुशंसा की जाती है। याचिका में कैबिनेट लॉ सेक्रेटरी यूनियन ऑफ इंडिया कानून मंत्रालय, सुप्रीम कोर्ट, मप्र हाईकोर्ट, मप्र शासन के मुख्य सचिव के अलावा जस्टिस विनय सराफ, जस्टिस विवेक जैन, जस्टिस राजेंद्र कुमार वानी, जस्टिस प्रमोद कुमार अग्रवाल, जस्टिस विनोद कुमार द्विवेदी, जस्टिस देव नारायण मिश्रा और जस्टिस गजेंद्र सिंह को पक्षकार बनाया गया था। मामले में सुनवाई पश्चात न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। जिसे सार्वजनिक करते हुए न्यायालय ने उक्त मत के साथ दायर याचिका खारिज कर दी। वहीं याचिकाकर्ताओं का कहना है कि हाईकोर्ट के उक्त फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करेंगे।