नई दिल्ली। भारत में 25 हाईकोर्ट के 789 जजों में से मात्र 98 जजों ने अपनी संपत्ति के बारे में जानकारी दी है। वहीं सुप्रीम कोर्ट के 33 जजों में से 27 जजों ने अपनी संपत्ति की जानकारी, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को दी है। सुप्रीम कोर्ट के 6 जजों ने अभी तक कोई जानकारी नहीं दी है।
संसद की कार्मिक लोक शिकायत और न्याय समिति ने 1 साल पहले सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की संपत्ति और देनदारी का अनिवार्य रूप से खुलासा करने की अनुशंसा की थी। इस अनुशंसा के बाद भी हाईकोर्ट के जजों में संपत्ति का खुलासा करने में कोई रुचि नहीं ली है। पिछले कुछ वर्षों में न्यायपालिका के फैसलों से आम जनता के बीच में न्यायपालिका की साख कम हुई है। उसको देखते हुए यह माना जा रहा है। जजों को अपनी संपत्ति का खुलासा करना चाहिए।
कुछ जजों ने अपनी संपत्ति का ब्यौरा वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। जजों ने स्वयं की संपत्ति, आश्रितों की संपत्ति तथा पत्नी की संपत्ति की जानकारी दी है। कुछ जजों ने अपने शेयर, जीवन बीमा पॉलिसी और म्युचुअल फंड की जानकारी भी वेबसाइट पर अपलोड की है।
एक रिपोर्ट से प्राप्त हुई जानकारी के अनुसार हाईकोर्ट के जिन जजों ने वेबसाइट पर अपनी जानकारी उपलब्ध कराई है। उसमें केरल हाईकोर्ट के 39 जजों में से 37 जजों ने, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के 35 में से 31 जजों ने, दिल्ली हाईकोर्ट के 39 में से 11 जजों ने, हिमाचल प्रदेश के 12 में से 10 जजों द्वारा,छत्तीसगढ़ के 17 में से 2,कर्नाटक के 50 जजों में से मात्र 2 और मद्रास हाई कोर्ट के 62 जजों में से केवल पांच ने अपनी जानकारी उपलब्ध कराई है।
पिछले कुछ वर्षों में आम नागरिकों को न्यायपालिका की कार्यप्रणाली और जजों के फैसलों को लेकर समय-समय पर विवादित स्थिति बनती रही है। सरकार ने अभी इस संबंध में कोई कानून नहीं बनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने 7 मई 1997 को एक प्रस्ताव के जरिए न्यायाधीशों को अपनी और परिवार जनों की संपत्ति की जानकारी भारत के मुख्य न्यायाधीश को देने का नियम बनाया था। 1 साल पहले संसद की कार्मिक लोक शिकायत और न्याय समिति ने भी इसकी अनुशंसा की थी। इसके बाद भी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा की अध्यक्षता में हुई बैठक में जो निर्णय लिया गया था। उसके अनुसार जानकारी प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं।