मप्र में भी दुकानदारों को लिखना होगा नाम! विधायक ने लिखा सीएम को पत्र

उप्र के बाद अब मप्र में भी दुकानदारों के नाम लिखने की मांग प्रबल हो गई है। उज्जैन में तो नगर निगम एक साल पहले ही यह आदेश दे चुका है जिसका पालन नहीं हो रहा है। उज्जैन के मेयर मुकेश टटवाल ने कहा है कि इस बार सावन के महीने में आदेश पर सख्ती से अमल करवाएंगे। वहीं इंदौर के विधायक रमेश मेंदोला ने इस आदेश को पूरे मप्र में लागू करने की अपील की है। उन्होंने मुख्यमंत्री मोहन यादव को इसके लिए पत्र लिखा है। यह पत्र उन्होंने सोशल मीडिया पर आज सुबह अपलोड भी किया है।  रमेश मेंदोला ने पत्र में लिखा है कि किसी भी व्यक्ति का नाम उसकी पहचान होता है। व्यक्ति को अपने नाम पर गर्व होता है। नाम पूछना ग्राहक का अधिकार है और दुकानदार को अपना नाम बताने में गर्व होना चाहिए, शर्म नहीं। मध्यप्रदेश के हर छोटे बड़े व्यापारी, कारोबारी और दुकानदार को अपना नाम बताने में गौरव के इस भाव की अनुभूति हो सके इसलिए मुख्यमंत्री मोहन यादव को पत्र लिखकर मध्यप्रदेश में हर दुकान के सामने दुकानदार का नाम लिखने का आदेश देने का आग्रह किया है। ऐसा करने से समाज में दुकानदार की पहचान स्थापित होगी और सभी दुकानदार अपना नाम और गुडविल बढ़ाने के लिए ग्राहकों को बेहतर सेवा देने के प्रयास करेंगे। इससे व्यापार जगत में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होगी और प्रदेश का विकास और अधिक तीव्र गति से होगा। गौरतलब है कि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कांवड़ यात्रा रूट पर आने वाली दुकानों में दुकानदारों को अपना नाम और डिटेल लिखने के आदेश दिए हैं। इसके बाद मप्र में भी यह आदेश लागू करने की मांग उठी है। वहीं, भाजपा विधायक के पत्र पर कांग्रेस ने भी मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव को पत्र लिखा है। दलित नेता और कांग्रेस प्रवक्ता मिथुन अहिरवार ने उत्तरप्रदेश की तर्ज पर उठी इस मांग को खारिज करने के साथ ही लिखा कि मध्य प्रदेश में ऐसी पूर्वाग्रह से गृसित और घृणित राजनीति को स्थान ना दिया जाए। मिथुन अहिरवार ने भाजपा पर जाति और धर्म की राजनीति करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि उत्तरप्रदेश के समान मांग मप्र में होना चिंताजनक है। उन्होंने लिखा कि ठेले पर ठेलेवाले का नाम लिखने का विरोध आपके सहयोगी दलों ने भी किया है। इस आदेश का देश में कई पार्टियां विरोध कर रही हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि इससे भेदभाव बढ़ेगा। कांग्रेस, सपा और बसपा के कई नेताओं ने इस फैसले का विरोध किया है। 

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