बिलकिस बनो के 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।
इतना ही नहीं कोर्ट ने सोमवार को यह तक कह दिया कि इस छूट पर महाराष्ट्र सरकार को फैसला लेना था। शीर्ष न्यायालय ने गुजरात सरकार को इस मामले में कड़ी फटकार भी लगाई है।
हालांकि, अगर अब 11 दोषी राहत के लिए महाराष्ट्र सरकार का भी रुख करते हैं, तो राह आसान नहीं होगी।
क्या बोला सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि जिस राज्य में मुकदमा चला, उसे भी ट्रायल कोर्ट से अनुमति लेनी होगी।
इस दौरान अदालत ने महाराष्ट्र सरकार के साल 2008 के संकल्प का भी जिक्र किया। अब 2008 के संकल्प के अनुसार, किसी भी प्रकार की माफी से पहले कम से कम 18 साल की सजा काटना जरूरी है।
21 जनवरी 2008 को ग्रेटर मुंबई में विशेष न्यायाधीश ने बिलकिस बानो के परिवार की हत्या और बलात्कार के दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
बाद में गुजरात सरकार ने अगस्त 2022 में इन लोगों को रिहा कर दिया था। फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को जेल अधिकारियों के पास सरेंडर करने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया है।
अगर इसे लागू किया जाता है, तो सभी 11 दोषी साल 2026 में भी माफी पा सकेंगे। खास बात है कि इसके तहत महिलाओं के खिलाफ क्रूर अपराधों के मामले में कम से कम 28 सालों की सजा काटना जरूरी है।
संभावनाएं जताई जा रही हैं कि ये शर्त 11 दोषियों पर लागू हो सकती है। अगर इसे लागू किया जाता है, तो दोषी कम से कम 12 साल यानी 2036 तक और जेल में रहेंगे।
इससे पहले क्या थी व्यवस्था
2008 की नीति से पहले माफी के मामले में 1992 की नीति को माना जाता था। हालांकि, अब तक यह साफ नहीं है कि कौन सी नीति लागू की जाएगी।
तब विशेष न्यायाधीश ने 2008 की नीति लागू की थी। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, अगर 1992 की नीति भी यहां लागू की जाती है, तो भी यौन मामलों से जुड़ी हत्याओं के मामले में उम्रकैद काटने वालों को कम से कम 22 साल बाद ही माफी मिल सकती है।
वहीं, अगर इस मामले में असाधारण हिंसा शामिल हो तो आंकड़ा 28 साल तक पहुंच सकता है। अगर ऐसा होता है तो 1992 की नीति लागू होने पर भी 11 दोषियों 2030 या 2036 के बाद ही रिहाई मिल सकती है।
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