मप्र में ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था बदहाल

 महिलाओं-बच्चों की हालत बढ़ा रही चिंता

भोपाल । मप्र में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर हर साल हजारों करोड़ रूपए खर्च किए जा रहे हैं। उसके बाद भी प्रदेश में ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था बदहाल है। इसको लेकर हाईकोर्ट ने भी चिंता जाहिर की है और इस गंभीर मुद्दे पर तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश देते हुए सरकार को 4 सप्ताह में जवाब पेश करने के लिए कहा है। हाई कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया कि प्रसव के दौरान आयरन फोलिक एसिड केवल 30 प्रतिशत महिलाओं को ही प्रसव के समय आयरन फोलिक एसिड दिया जाता है, बाकी 70 प्रतिशत महिलाएं इससे वंचित रह जाती हैं। गांधीवादी विचारक और लेखक चिन्मय मिश्र ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई है। दरअसल, मप्र में ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह उपेक्षित है। याचिका में कहा गया है कि केवल 42 प्रतिशत महिलाएं ही जन्म के 1 घंटे के अंदर अपने बच्चे को स्तनपान करवाती हैं। खून की कमी मध्यप्रदेश में 58 प्रतिशत से अधिक महिलाएं एनीमिया (खून की कमी) से ग्रस्त हैं। इन सबके अलावा, याचिका में ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों, स्वास्थ्य केंद्रों और दवाओं की कमी का भी उल्लेख किया गया है।

कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में चिकित्सक ही नहीं


2019/21 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार मप्र में 309 कम्युनिटी हेल्थ सेंटर है, जिसमें हर एक सेंटर में एक फिर्जीशियन, एक सर्जन, एक स्त्री रोग विशेषज्ञ तथा एक बच्चों के चिकित्सक की नियुक्ति होना आवश्यक है, लेकिन 309 में में एक भी ऐसा कम्युनिटी हेल्थ सेंटर नहीं है। जहां इस सब की नियुक्ति हो। कुल मिलाकर 324 सर्जन के पद खाली पडें है, इनमें से केवल 7 की ही नियुक्ति हुई है और बाकी 302 पद खाली हैं। 324 जनरल फिजीशियन के पद खाली है। स्त्री रोग विशेषज्ञ में 324 में से केवल 21 पद भरे हैं, बाकी 303 पद खाली हैं। बच्चों के विशेषज्ञों के लिए 309 पदों आवश्यकता है, लेकिन केवल 60 पद ही स्वीकृत हैं, जिनमें से भी केवल 11 पर ही नियुक्ति हुई हैं। सबसे चौंकाने वाले स्थिति यह है कि, मध्य प्रदेश में एक भी कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में नेत्र रोग विशेषज्ञ नहीं है और केवल 5 ही एनेस्थेटिस्ट नियुक्त हैं।

 

कुपोषण की स्थिति चिंताजनक


वहीं केन्द्र सरकार के द्वारा जारी रिपोर्ट में मप्र में कुपोषण को लेकर चिंता जनक आकड़ें सामने आये है। प्रदेश की आंगनबाडिय़ों में पंजीकृत 6 वर्ष से कम उम्र के 66 लाख बच्चों में से 26 लाख यानि 40 प्रतिशत बच्चे बौने पाये गये हैं, वहीं करीब 17 लाख यानि 27 प्रतिशत बच्चों का वजन मानक औसत वजन से कम पाया गया है। केन्द्र सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश भीषण कुपोषण की चपेट में आ गया है। प्रदेश की आंगनबाडिय़ों में पंजीकृत 6 वर्ष से कम उम्र के 66 लाख बच्चों में से 26 लाख यानि 40 प्रतिशत बच्चे बौने पाये गये हैं, वहीं करीब 17 लाख यानि 27 प्रतिशत बच्चों का वजन मानक औसत वजन से कम पाया गया है। उन्होंने आगे कहा कि, सरकार द्वारा संचालित पोषण ट्रेकर की माह जून 24 की रिपोर्ट दर्शाती है कि मप्र में पिछले दो माह में ही कम वजन वाले बच्चों की संख्या में 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। मई 2024 में जहां मप्र की आंगनबाडिय़ों में कम वजन वाले बच्चों की संख्या 24 प्रतिशत थी, वहीं जुलाई 2024 में यह बढक़र 27 प्रतिशत पहुंच गई है।

 

ये हैं आंगनबाडिय़ों की बुनियादी समस्याएं

केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार 77 हजार 120 आंगनबाड़ी केंद्रों में पीने के पानी का इंतजाम है, जबकि 20 हजार 210 केंद्रों में पेयजल की दिक्कत है। इसके अलावा, 42 हजार 313 आंगनबाडिय़ों के पास खुद का भवन नहीं है और 20 हजार 993 आंगनबाडिय़ां या तो हैं ही नहीं, और यदि हैं तो वे इस्तेमाल योग्य नहीं हैं। हालांकि आंगनबाडिय़ों के बच्चों की सेहत सुधारने के लिए विभाग ने भोजन में बदलाव करने की योजना बनाई है। अब बच्चों को सप्ताह में एक बार मोटे अनाज से बनी चीजें और सोयाबीन की बर्फी दी जाएगी। अभी तक सोयाबीन से बनी बर्फी केवल गर्भवती महिलाओं और किशोरी बालिकाओं को दी जाती थी।

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