1 हजार साल तक खड़ा रहेगा राम मंदिर, भूकंप और बाढ़ से कुछ नहीं बगड़ेगा; जानें कैसे होगा यह कमाल…

अयोध्या के भव्य राम मंदिर में आज रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है।

यह मंदिर महज पूजा करने की जगह नहीं है, बल्कि इसमें प्राचीन आस्था और आधुनिक विज्ञान का भी मित्रण है। राम मंदिर मॉर्डन इंजीनियरिंग के चमत्कार को दर्शाता है।

इसे इतनी ज्यादा मजबूती दी गई है कि यह भूकंप के जोरदार झटकों और भीषण बाढ़ का सामना भी आसानी से कर सकता है।

साथ ही अयोध्या का यह दिव्य राम मंदिर 1,000 साल तक मजबूती से खड़ा रहने वाला है।

टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स लिमिटेड के मैनेजमेंट के साथ लार्सन एंड टुब्रो कंपनी की ओर से राम मंदिर बनाया जा रहा है। यह सावधानीपूर्वक बनाए गए प्लान और आधुनिक निर्माण तकनीकों का नतीजा है।

राम मंदिर का डिजाइन पारंपरिक नागर वास्तुकला शैली से प्रभावित है जिसमें 360 पिलर्स लगाए गए हैं। मंदिर पूरी तरह से पत्थरों से बनाया गया है जिसमें आधुनिक लोहे, स्टील और यहां तक कि सीमेंट का इस्तेमाल नहीं हुआ है।

यह फैसला इसलिए लिया गया ताकि मंदिर को भूकंप से सुरक्षित रखा जा सके।

मालूम हो कि दूसरे मैटेरियल्स की तुलना में पत्थर की जीवनकाल लंबा और टिकाऊ होता है। यही वजह मानी जाती है कि अभी भी सैकड़ों साल पुराने कई मंदिर सुरक्षित हैं। 

मंदिर के नींव पर दिया गया विशेष ध्यान
राम मंदिर बनाते समय वैज्ञानिकों की ओर से उसकी नींव पर विशेष ध्यान दिया गया है। यह मंदिर रोल्ड कॉम्पैक्ट कंक्रीट की 15 मीटर मोटी परत पर बनाया गया, जिसमें फ्लाई ऐश, डस्ट और केमिकल्स से बने कॉम्पैक्ट कंक्रीट की 56 परतें शामिल हैं।

इस मजबूत आधार को ग्रेनाइट के 21 फुट मोटे चबूतरे से और ज्यादा मजबूती दी गई है, जो मंदिर को नमी से बचाने में मदद करेगा। नींव के पिलर्स की तुलना नदियों पर बने बड़े पुलों से कर सकते हैं, जो भूकंपीय गतिविधियों से मंदिर की मजबूती सुनिश्चित करेंगे।

जमीन को 15 मीटर खुदवाया और मिट्टी निकाली
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, राम मंदिर 6.5 तीव्रता तक के भूकंप को सहने में सक्षम है। ऐसा अनुमान है कि 1,000 साल तक इसकी मरम्मत करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

मंदिर बनाने वाली टीम ने अयोध्या से नेपाल तक फैले क्षेत्र में अब तक आए भूकंपों की तीव्रताओं को माप की। इसके बाद इस मंदिर के लिए यूनिक फाउंडेशन डिजाइन करने के लिए प्रयोगशाला में काम हुआ।

चेन्नई में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की ओर से कुछ अहम सुझाव मिले। इस आधार पर इंजीनियरों ने जमीन को 15 मीटर तक खुदवाया और वहां की ऊपरी मिट्टी को हटा दिया।

यहां री-इंजीनियर्ड की गई मिट्टी को भरा गया। यह मिट्टी 14 दिनों के भीतर पत्थर में बदल जाती है और फिर निर्माण प्रक्रिया के दौरान 47 परतें बिछाई गईं।

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