रायपुर : राजनांदगांव शहर की तासीर दूसरे शहरों से बिल्कुल अलग है। यहां हर उत्सव एवं पर्व शिद्दत से ऐसे महसूस होते हैं, मानों जिंदगी के हर रंग यहां मुस्कुराते हैं। यह एक जिन्दादिल शहर है, यहां के रंगों में उत्सव एवं संस्कृति रची बसी है। संस्कारधानी में चाहे गणेश चतुर्थी हो या नवरात्रि, दशहरा, दीपावली एवं अन्य पर्व इनकी अनोखी रंगत यहां के नसों में धधकती है। संस्कारधानी की झांकी एवं हॉकी बहुत प्रसिद्ध है। बात चाहे गणेश चतुर्थी के समय की भव्य झांकी की हो या हॉकी के उम्दा खेल की। झांकी के समय बड़ी संख्या में राजनांदगांव एवं अन्य जिलों के नागरिक यहां शामिल होते हैं। शहर के फ्लाईओव्हर से निकलना, शहर को निहारना, मानों एक ही नजर में पूरे शहर की आबोहवा को समझने के समान है। यहां की खासियत है, लोगों की मिलनसारिता तो वहीं शहरी एवं ग्रामीण परिवेश की मिली जुली संस्कृति का आभास होता है।
राजनांदगांव की विशेष पहचान
राजनांदगांव की विशेष पहचान
राज्य के प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय एस्ट्रोटर्फ हॉकी स्टेडियम के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य एवं राजनांदगांव को खेल मानचित्र पर एक नई पहचान मिली है। लगभग 22 करोड़ रूपए की लागत से निर्मित भव्य अन्तर्राष्ट्रीय एस्ट्रोटर्फ हॉकी स्टेडियम में हॉकी प्रतियोगिता का आयोजन होता आ रहा है। लगभग साढ़े नौ एकड़ के रकबे में निर्मित यह विशाल स्टेडियम हॉकी के खिलाडिय़ों को समर्पित है। हॉकी की नर्सरी के रूप में जिले की पहचान है। यहां के हॉकी खिलाड़़ी अपनी बेहतरीन खेल प्रतिभा का प्रदर्शन करते रहे हैं। शहर के मध्य में लगभग 20 एकड़ से भी अधिक क्षेत्र में फैले दिग्विजय स्टेडियम में क्रिकेट मैदान है एवं बास्केटबाल का अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट है। देश भर में बास्केटबाल के 8 कोर्ट में से एक केवल राजनांदगांव शहर में है। यहां बैडमिंटन के 3 इंडोर कोर्ट, 3 टेबल टेनिस, वेटलिफ्ंिटग ट्रेनिंग सेंटर, एथलेटिक्स 400 मीटर ट्रैक, मल्टीपर्पज जिम, भारतीय खेल प्राधिकरण साई का हॉकी तथा बास्केटबाल के लिए हॉस्टल है।
राजनांदगांव की विशेष पहचान
राजनांदगांव की विशेष पहचान
देश के तीन महान साहित्यकारों गजानन माधव मुक्तिबोध, डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, डॉ. बल्देव प्रसाद मिश्र के साहित्य, कृतियों, विचारों एवं जीवन को समझने के लिए हिन्दी साहित्य के विद्यार्थियों के लिए मुक्तिबोध संग्रहालय दर्शनीय है। देश के तीन महान साहित्यकारों गजानन माधव मुक्तिबोध कक्ष, डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, डॉ. बल्देव प्रसाद मिश्र की कृतियां, पाण्डुलिपि एवं वस्तुएं सुरक्षित रखी गई हैं। उनकी रचनाएं यहां संकलित की गई है। उनके डायरी के अंश तथा उनके जीवन के प्रेरक प्रसंग की जानकारी यहां अंकित है। अन्य जिलों एवं विभिन्न स्थानों से शोधार्थी एवं विद्यार्थी यहां उनकी स्मृतियों से जुड़ी वस्तुएं एवं कृतियां संग्रहालय में देखना समझना चाहते है। राजनांदगांव में उनकी अविस्मरणीय यादों को संजोए यह शहर हिन्दी साहित्य प्रेमियों के लिए त्रयी की यह कर्मभूमि का गौरवपूर्ण स्थान है। राजनांदगांव जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर प्यारे लाल सिंह, कुंज बिहारी चौबे, नाचा व रंगकर्म के प्रमुख कलाकार पद्मगोविंदराम निर्मलकर, फिदाबाई मरकाम, गायन एवं अभिनय के प्रसिद्ध कलाकार भैय्यालाल हेड़ऊ, चंदैनी गोंदा के कलाकार खुमान साव, फिल्म निर्देशक किशोर साहू, लोक कलाकार बरसाती भैय्या, सुप्रसिद्ध गायिका कविता वासनिक, कवि एवं उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल, पद्मफूलबासन बाई जैसे ख्याति प्राप्त साहित्यकारों, कलाकारों, समाजसेवी एवं प्रबुद्धजनों से जिले की विशेष पहचान है।
राजनांदगांव की विशेष पहचान
राजनांदगांव शहर तालाबों का शहर है। जल संरक्षण की दृष्टिकोण से शहर में रानीसागर, बूढ़ासागर, मोतीपुर तालाब, मठपारा तालाब, शंकरपुर तालाब सहित लगभग 32 से अधिक तालाब हैं। शहर का चौपाटी प्रसिद्ध है। जहां लक्ष्मण झूला, ट्वाय ट्रेन, नौका विहार, बच्चों के खेलने के लिए झूले एवं खुबसूरत गार्डन आकर्षण का केन्द्र है। गार्डन के दूसरी ओर पुष्प वाटिका है। वहीं ऊर्जा पार्क सुंदर उद्यान है। शहर में विभिन्न स्थानों में गार्डन होने से हरितिमा का आभास होता है। जिला प्रशासन तथा नगर निगम द्वारा शहर के विभिन्न स्थानों में पौधरोपण किया गया। फ्लाई ओव्हर के नीचे गार्डन विकसित किया गया है तथा फ्लाई ओव्हर के अन्य भाग को व्यवस्थित तरीके से पार्किंग के लिए उपयोग किया जा रहा है। वहीं छोटी-छोटी दुकानें भी लगाई जा रही हैं। शहर के मध्य से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 53 पर फ्लाई ओव्हर के बनने से शहर पर ट्रैफिक का दबाव कम हुआ है, शहर व्यवस्थित बना तथा आवागमन की सुविधा बढ़ी है। शहर की डिजिटल लाईब्रेरी विद्यार्थियों एवं पाठकों के लिए लोकप्रिय है।
भारतीय इतिहास में रियासतों का अपना महत्व रहा है। छत्तीसगढ़ में 14 रियासत थी, उनमें से एक रियासत राजनांदगांव थी। रियासत काल में राजनांदगांव एक राज्य के रूप में विकसित था एवं यहां पर सोमवंशी, कलचुरी एवं मराठों का शासन रहा। पूर्व में यह नंदग्राम के नाम से जाना जाता था। यहां बैरागी राजाओं का शासन था। रियासत के प्रमुख शासकों में महंत घासीदास, महंत बलराम दास, महंत सर्वेश्वर दास एवं अंतिम शासक महंत दिग्विजय दास प्रमुख थे। इन शासकों के शासनकाल में रोजगार, शिक्षा, साहित्य के क्षेत्र में इस रियासत का उल्लेखनीय योगदान रहा है। महंत बलराम दास के समय में रायपुर वाटर वर्क्स रायपुर, रानी जोधपुर वाटर वर्क्स 1842, बलराम प्रेस 1899 बीएनसी मिल्स की स्थापना, नगर पालिका की स्थापना, स्कूलों का निर्माण महत्वपूर्ण कार्यों में से है। देश की आजादी के लिए राष्ट्रीय आंदोलन में राजनांदगांव जिले की अहम भूमिका रही है। ऐतिहासिक दृष्टि से शहर के प्राचीन मंदिर शीतला मंदिर, नोनी बाई मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, बलभद्र, मंदिर, रियासतकालीन विरासत, यहां का समृद्ध ऐतिहासिक धरोहर है। पाताल भैरवी मंदिर बर्फानी धाम के नाम से प्रसिद्ध है। भव्य गुरूद्वारा, रामदरबार, रथ मंदिर धार्मिक पर्यटन स्थल है। छत्तीसगढ़ी संस्कृति के अनुरूप स्थानीय हरेली, पोला, छेरछेरा, तीजा, दीपावली, होली एवं अन्य सभी लोकपर्व मनाए जाते हैं। खान-पान की संस्कृति में चीला, फरा, देहरौरी, ठेठरी, खुरमी, पपची, अईरसा जैसे स्थानीय व्यंजनों का प्रचलन में है।