महाकुंभ अमृत कलश यात्रा में लोगों ने किया पूजन, 3000 किमी दूरी तय कर पहुंचेगी प्रयागराज

कश्मीर के ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व वाले शारदा पीठ से प्रारंभ हुई महाकुंभ अमृत कलश रथ यात्रा ने भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं को पुनर्जीवित करने का एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है. यह यात्रा डांग क्षेत्र के नवलापुरा महाकाल मंदिर के महंत व राष्ट्रीय अनहद महायोग पीठ के पीठाधीश्वर संत रुद्रनाथ महाकाल विशाल जी महाराज के द्वारा शुरू हुई है. आपको बता दें, कि इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य सनातन संस्कृति और अखंड भारत के विचार को जन-जन तक पहुंचाना है. यह अमृत कलश यात्रा लगभग 3000 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए अंतिम पड़ाव  प्रयागराज में पहुंचेगी.

लोगों ने किया अमृत कलश का पूजन
कि यह यात्रा अखंड भारत सेतुबंध अभियान का एक अभिन्न हिस्सा है, जो शारदा पीठ के गौरव को फिर से स्थापित करने के लिए समर्पित है. शारदा पीठ जो कभी ज्ञान और आध्यात्म का केंद्र था, आज भी भारतीय संस्कृति का मुकुट माना जाता है. आपको बता दें, कि यह यात्रा भरतपुर के बयाना कस्बे में पहुंची थी, जहां श्रद्धालुओं ने नगर परिक्रमा की और अमृत कलश का पूजन किया. इस दौरान स्थानीय लोगों में उत्साह और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिला

इन कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री को भी किया है आमंत्रित
यह अमृत कलश यात्रा लगभग 3000 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए सात राज्यों और सैकड़ों मंदिरों का भ्रमण करते हुए अंतिम पड़ाव 10 जनवरी को प्रयागराज में पहुंचेगी. जहां इसे महाकुंभ में विसर्जित किया जाएगा. आपको बता दें, कि प्रयागराज में इस अवसर पर एक विशाल पंडाल बनाया गया है, जहां पूरे एक महीने तक धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कार्यक्रम होंगे. इनमें देश-विदेश से श्रद्धालुओं और संतों का आगमन होगा, साथ ही राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री भी इन आयोजनों में आमंत्रित किए गए हैं.

ज्ञान की परंपरा का पुनर्निर्माण हो
संत रुद्रनाथ ने इस यात्रा के दौरान कश्मीर में धारा 370 हटाने के फैसले को एक ऐतिहासिक कदम बताते हुए कहा, कि यह सनातन संस्कृति के पुनर्जागरण के लिए अत्यंत आवश्यक था. उन्होंने कहा कि मां शारदा से यही प्रार्थना है, कि सभी लोग एकजुट रहें, और भारत की ज्ञान परंपरा का पुनर्निर्माण हो. महाकुंभ अमृत कलश यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत की एकता और अखंडता का प्रतीक भी है.

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