भोपाल । मप्र हाई कोर्ट के निर्देश पर 11 वर्ष बाद राज्य में सहकारी संस्थाओं के चुनाव के कार्यक्रम तय हो गए थे। 8, 11, 28 अगस्त और 4 सितंबर को मतदान होना था। लेकिन एक बार फिर सहकारी समितियों के चुनाव टल गए हैं। बताया जा रहा है कि खरीफ फसलों की बोवनी में किसानों के व्यस्त होने के कारण सदस्य सूची ही नहीं बन पाई है। इसे देखते हुए अब मानसून के बाद चुनाव कराने की तैयारी है। यानी अब अक्टूबर-नवंबर में चुनाव होने की संभावना है। गौरतलब है कि प्रदेश में सहकारी समितियों के चुनाव लंबे समय से नहीं हो पा रहे हैं। केवल चुनाव के लिए तारीख तय होती है, फिर चुनाव टल जाते हैं। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि आखिर में सहकारी समितियों के चुनाव कब होंगे।
हाईकोर्ट के निर्देश के बाद भी फिर टले चुनाव
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में 4,534 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां हैं। इनके चुनाव वर्ष 2013 में हुए थे। इनके संचालक मंडल का कार्यकाल वर्ष 2018 तक था। इसके बाद से प्रशासक ही पदस्थ हैं। प्रदेश की सहकारी समितियों से लगभग 50 लाख किसान जुड़े हुए हैं। इसके बाद सरकार ने चुनाव नहीं कराए, जिसके कारण जिला सहकारी केंद्रीय बैंक और अपेक्स बैंक के संचालक मंडल के भी चुनाव नहीं हुए। जबकि, प्रत्येक 5 वर्ष में चुनाव कराए जाने का प्रावधान है। चुनाव न होने की सूरत में पहले 6 माह और फिर अधिकतम 1 वर्ष के लिए प्रशासक नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन यह अवधि भी बीत चुकी है। इसको लेकर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सरकार को प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के चुनाव कराने के निर्देश दिए थे।
अब फिर से जारी होगी चुनाव की तारीख
राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी ने 26 जून से नौ सितंबर तक चार चरण में चुनाव का कार्यक्रम जारी किया था। जिसमें आठ, 11, 28 अगस्त और 4 सितंबर को मतदान प्रस्तावित था लेकिन अभी तक चुनाव की प्रक्रिया ही प्रारंभ नहीं हुई। सूत्रों का कहना है कि अभी सरकार चुनाव नहीं कराना चाहती है इसलिए इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सदस्यता सूची तैयार न होने और खरीफ फसलों की बोवनी में किसानों की व्यस्तता का हवाला देकर चुनाव टाल दिए गए हैं। अब ये मानसून बीतने के बाद अक्टूबर-नवंबर में कराए जा सकते हैं। आपको बता दें कि यह चुनाव गैर दलीय आधार पर होते हैं। लेकिन इनमें राजनीतिक दलों का पूरा दखल रहता है। भाजपा और कांग्रेस के सहकारिता प्रकोष्ठ हैं, जो चुनाव की पूरी जमावट करते हैं। अपनी विचारधारा से जुड़े नेताओं को प्राथमिक समितियों का संचालक बनाकर जिला और राज्य स्तरीय समितियों में भेजा जाता है और फिर बहुमत के आधार पर अध्यक्ष-उपाध्यक्ष बनवाया जाता है। भाजपा और कांग्रेस के सहकारिता प्रकोष्ठ हैं, जो चुनाव की पूरी जमावट करते हैं। कांग्रेस ने पूर्व सहकारिता मंत्री भगवान सिंह यादव, डॉ. गोविंद सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव और राज्य सभा सदस्य अशोक सिंह की चुनाव को लेकर समिति भी बनाई है। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि उन समितियों के चुनाव नहीं हो पाएंगे, जो विभिन्न कारणों से अपात्र हैं। इसमें खाद-बीज की राशि न चुकाने, गेहूं, धान सहित अन्य उपजों के उपार्जन में गड़बड़ी या अन्य कारणों से अपात्र घोषित संस्थाएं शामिल हैं।