बेगूसराय : गंगा किनारे या फिर कहीं भी अज्ञात बच्चों का मिलना एक गंभीर सामाजिक समस्या है. कभी आर्थिक तंगी तो कभी अवांछित गर्भधारण या विवाहेतर संबंधों के कारण बच्चे को त्याग दिया जाता है. ऐसे में कभी कभार कोई मासूम लोगों को जिंदा भी मिल जाता है. जो उसे एक पाल पोश कर नई पहचान दे जाते हैं. ऐसी ही एक कहानी है बिहार के आदि कुंभ स्थली सिमरिया धाम के स्वामी गणेश जी महाराज की. स्थानीय महंत के मुताबिक आज से 22 वर्ष पूर्व जिस दुधमुंहे बच्चे को उसकी मां जन्म देने के बाद लावारिस हालत में सिमरिया गंगातट स्थित झाड़ी में छोड़ चली गई, आज वही 22 साल बाद गणेश सिमरिया धाम स्थित सदाशिव सन्यास आश्रम मंदिर के मुख्य महंत बने हैं.
स्वामी गणेश की महाराज बने देश के सबसे कम उम्र के महंत
सदाशिव सन्यास आश्रम मंदिर के साथी महंत मृत्युंजय कुमार झा ने बताया गंगा किनारेझाड़ी में आज से 22 साल पहले मिला. अज्ञात मासूम को आश्रम के महंत स्वामी ईश्वरानंद उर्फ संन्यासी बाबा ने उठाकर इस आश्रम में लाया. इसके बाद इन्होंने ही इसका नामकरण गणेश के नाम से किया है. फिर शिक्षा-दीक्षा सिमरिया धाम स्थित ही आश्रम में ही उनके गुरु व आश्रम के महंत स्वामी ईश्वरानंद उर्फ संन्यासी बाबा से प्राप्त हुई. इस महीने जब सन्यासी बाबा का निधन हो गया तो निधन के बाद उनके उत्तराधिकारी महंत स्वामी गणेश जी महाराज बनाए गए हैं.
आज ये देश के सबसे कम उम्र के आश्रम के मुख्य महंत बनकर सामने आए हैं. अब यह बालक स्वामी भगवान की पूजा-अर्चना व आश्रम की देख-रेख करते हैं. कुंभस्थली सिमरिया धाम के सीढ़ी व गाइड बांध के समीप मौजूद सदाशिव सन्यास आश्रम मंदिर के महंत स्वामी ईश्वरानंद का निधन 16 अप्रैल 2024 को निधन होने के महज़ कुछ ही महीने के बाद इन्हें सदाशिव सन्यास आश्रम मंदिर का महंत बनाया गया है .
1988 में सन्यासी बाबा कर्नाटक से आकर बनाएं थे यह आश्रम
ज्ञात हो कि वर्ष 1988 में जब उक्त मंदिर के महंत स्वामी ईश्वरानंद उर्फ सन्यासी बाबा जब कर्नाटक से जब सिमरिया धाम पहुंचे. यहां केवल चारों बगल केवल जंगल था. उस समय वे जंगल को साफ कर शिवलिंग व आश्रम की स्थापना किये थे. धीरे-धीरे उनके शिष्यों के योगदान से आश्रम का रूप आज लोकल 18 पर तस्वीरों में आप देख पा रहे हैं. मंदिर के सदस्य मनंजय कुमार झा व संजीव कुमार ने बताया कि सदाशिव संन्यास आश्रम मंदिर के पूर्व महंत संन्यासी बाबा ने वाराणसी की परंपरा को सिमरिया धाम में अपनाया हैं .वाराणसी की तर्ज पर ही यहां प्रत्येक दिन तीन बार (त्रिकाल पूजा) भगवान की पूजा-अर्चना की जाता है. इसमें सुबह-शाम व दोपहर शामिल है.