आपने जेम्स बॉन्ड या जासूस आधारित फिल्मों में अक्सर देखा होगा कि कोई शख्स बड़ी हिम्मत और बहादुरी से किसी देश का विमान चोरी कर लेता है।
इस तरह की बातें फिल्मों में ही अच्छी लगती हैं लेकिन, अगर यह कहा जाए कि ऐसा सच में भी हुआ था तो आप क्या कहेंगे।
बात 60 के दशक की है जब विश्व शक्ति बनने की चाह में सोवियत रूस मिग-19 को अपग्रेड करते हुए मिग-21 फाइटर जेट पर काम कर रहा था।
सोवियत रूस की मदद से मिस्र, लेबनान और ईराक मिग-21 पाकर इजरायल को हड़का रहे थे। तब इजरायल ने निश्चय किया कि वह मिग-21 विमान को ही चुरा लेगा। इस असंभव से मिशन में उसे तीसरी कोशिश पर सफलता मिली।
इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद का सबसे मुश्किल और चर्चित मिशन रहा है- ऑपरेशन डायमंड। इस ऑपरेशन की कहानी 25 मार्च 1963 को तब शुरू हुई जब मीर एमिट मोसाद के प्रमुख बने।
उन्होंने पद संभालने के बाद इजरायल के बड़े अधिकारियों से पूछा कि मोसाद इजरायल के लिए ऐसा क्या करे जो आजतक की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।
जवाब में सभी ने मीर से कहा कि अगर वो सोवियत रूस का मिग-21 फाइटर विमान इजरायल ला जाएं तो बहुत फायदा हो सकता है। तब मीर ने इस बात को सीरियसली नहीं लिया।
इसके बाद एजेर वाइस मैन ने इजरायली वायुसेना की कमान संभाली। मीर वाइस मैन के साथ सुबह-सुबह कॉफी पी रहे थे। मीर ने उनसे भी यही सवाल किया।
जवाब में वाइस मैन ने कहा कि सोवियत रूस के मिग-21 से कम और उससे ज्यादा कुछ और नहीं चाहिए। यह सुनकर मीर चौंक गए और बोले- आप पागल हो गए हैं क्या? आप नहीं जानते पूरे पश्चिमी एशिया में मिग-21 किसी के पास नहीं है।
खैर बात बनी और मिग-21 विमान को इजरायल लाने के लिए शुरू हुआ-ऑपरेशन डायमंड।
जब दो कोशिशों में फेल हुआ मोसाद
पहली कोशिश 1960 में मिस्र से की गई। यहां इस काम की जिम्मेदारी जीन थॉमस को दी गई।
जीन को मिस्र से मिग-21 विमान चोरी करके इजरायल लाना था लेकिन, बदकिस्मत से वो पकड़े गए और अपने दो अन्य साथियों के साथ फांसी पर लटका दिए गए।
इसके बाद मोसाद ने मन बनाया कि इस मिशन को ईराक में चलाया जाएगा। दो ईराकी पायलटों को किसी तरह मना भी लिया गया लेकिन, ऐन वक्त पर वो भी मुकर गए। इस तरह मोसाद की दो कोशिशें नाकाम हो चुकी थी।
लेडी जासूस के झांसे में आया ईराकी पायलट
तीसरी कोशिश को अंजाम तक पहुंचाने में मोसाद को चार साल लग गए। इस बार मोसाद की लेडी जासूस ने ईराकी पायलट को अपने झांसे में ले लिया।
इस पायलट का नाम था- मुनीर रेड्फा। मुनीर ईसाई धर्म का था और ईराक में उसे प्रमोशन नहीं मिल पा रहा था। इससे वह काफी परेशान था।
मोसाद की लेडी जासूस ने इसी का फायदा उठाया और उसे इजरायली मदद का भरोसा दिया गया। इजरायल ने मुनीर को 10 लाख डॉलर की मदद, सरकारी नौकरी और परिवार समेत इजरायल में पनाह का वादा किया।
मुनीर मान गया और फिर 16 अगस्त 1966 को वो ऐतिहासिक दिन आया जब मुनीर ने ईराक से मिग-21 चोरी किया और इजरायल में लैंड कराया।
मिग-21 से इजरायल को क्या फायदा हुआ?
कहा जाता है कि उस वक्त इजरायल मिस्र, लेबनान और ईराक जैसे मुल्कों की हेकड़ी झेल रहा था। ये देश सोवियत रूस के मिग-21 को खरीदकर इजरायल को डरा रहे थे।
जब इजरायल के पास मिग-21 आया तो ईराक से सोवियत रूस में हलचल मच गई। विमान वापस मांगा गया लेकिन इजरायल ने ऐसा करने से इनकार कर दिया।
इस झगड़े के बीच इजरायली एक्सपर्ट्स ने मिग-21 का अध्ययन किया, जिससे भविष्य में उनके लिए अत्याधुनिक विमान बनाना आसान किया। 1967 में अरब के साथ युद्ध में इजरायल की जीत की एक वजह मिग-21 विमान भी रहा।