भोपाल। मध्य प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने सरकारी अस्पतालों में दवा उपलब्ध कराने के लिए, एक कंपनी बनाई है। इस कंपनी का नाम मध्य प्रदेश पब्लिक हेल्थ सर्विसेज कॉरपोरेशन लिमिटेड रखा गया है। इस कंपनी की जिम्मेदारी है। वह सरकारी अस्पतालों में बंटने वाली दवाओं की खरीदी कर उन्हें अस्पतालों तक भेजे।
इस कंपनी द्वारा खरीदी गई दवाइयों की जांच में 20 दवाइयां और इंजेक्शन अमानक पाई गई हैं। जो दवाइयां जांच में अमानक मिली हैं। वह दवाइयां गर्भवती महिलाओं के ऑपरेशन के पहले या बाद में, पेट के इलाज,इंफेंक्शन रोकने के लिए, फेफड़ों की सूजन रोकने और रक्त संबंधी गड़बड़ी को ठीक करने, आपात स्थिति में हार्ट अटैक की बीमारी मे दी जाने वाली दवा, बुखार को रोकने की दवा, वायरस की रोकथाम और किडनी के मरीजों को दी जाने वाली दवायें शामिल हैं।
सरकारी अस्पतालों में अमानक दवाओं का उपयोग मरीजों की बीमारी के लिए किया गया है। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान गर्भवती महिलाओं और हार्टअटैक से पीड़ित मरीजों के लिए जानलेवा साबित हुईं है। इस बात की कोई पुष्टि तो नहीं है, कि कितने मरीजों की जान गई है। जिन दवाइयां का असर मरीज पर होना था। यदि उनका असर नहीं हुआ है, तो उसका परिणाम ही मृत्यु है।
गुणवत्ता की जांच करने की जिम्मेदारी सरकारी कंपनी की थी। जो दवा खरीद रही है। दवा खरीदने के पहले और बाद में जांच कराने के मामले में कंपनी द्वारा कोताही बरती गई है। दवाइयां जब खत्म हो जाती हैं। उसके बाद जांच के परिणाम आते हैं। जो मरीजों की मौत का कारण बन जाते हैं। इस बीच दवा कंपनी को भुगतान भी हो जाता है।
दवा की सरकारी खरीद में अमानक दवाइयां बड़े पैमाने पर सप्लाई हो रही हैं। जल्द एक्सपायर होने वाली दवाई भी अस्पतालों में भेजी जाती हैं। बड़ी मात्रा में दवाइयां एक्सपायर हो रही हैं। इससे सरकार को करोड़ों रुपए का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। दवा खरीदने वाली सरकारी कंपनी पर यह भी आरोप लगता है, वह ऐसी कंपनियों की दवाई खरीदी करती है। जो दवाई बनाने में गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखती हैं। कई कंपनियां ऐसी भी पाई गई है जिनकी सप्लाई की गई दो या तीन दवाइयां अमानक पाई गई हैं। उन्हें ब्लैकलिस्टेड भी नहीं किया गया। सरकारी अस्पतालों में जिस तरह से अमानक दवाइयां उपयोग में लाई जा रही है। उसके बाद सरकारी अस्पतालों में इलाज करने वाले मरीजों का भगवान ही मालिक है। डॉक्टर द्वारा दवाई और इंजेक्शन दिए जाने के बाद भी मरीज को मौत के मुंह में जाने से बचाया नहीं जा सका।