कांग्रेस में सवर्ण और दलित नेतृत्व का अभाव

मप्र कांग्रेस में नया प्रतिनिधित्व तैयार करने की रणनीति

भोपाल । मप्र में कांग्रेस पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारी है। लोकसभा चुनाव के बाद हुई बैठक में यह बात सामने आई है कि पार्टी में जातिगत नेतृत्व का संतुलन नहीं है। इसलिए पार्टी ने तय किया है कि  मप्र में नया प्रतिनिधित्व तैयार किया जाए, ताकि हर वर्ग पर पार्टी की पकड़ रहे। वर्तमान में कांग्रेस में ब्राह्मण-क्षत्रिय-दलित नेतृत्व का अभाव है। इसलिए पार्टी नेतृत्व ने तय किया है कि अब  ब्राह्मण-क्षत्रिय-दलित वर्ग के चेहरे को तलाश कर उसे नेतृत्व में शामिल किया जाएगा।
गौरतलब है कि भाजपा हमेशा जातीय संतुलन के साथ काम करती है। सत्ता और या संगठन हर जगह जाति का संतुलन बनाने की कोशिश रहती है। वर्तमान समय में भी सत्ता और संगठन में ब्राह्मण, क्षत्रिय, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, आदिवासी वर्ग, बनिया समाज और कायस्थ को जगह दी गई है। लेकिन कांग्रेस में इस पर ध्यान नहीं दिया जाता है। लेकिन अब कांग्रेस नेतृत्व ने भी जातीय संतुलन बनाने की रणनीति बनाई है।

 

मुख्यधारा से दूर

पिछले 20 वर्ष से मध्य प्रदेश में स्पष्ट बहुमत पाने में असफल रही प्रदेश कांग्रेस अब क्षत्रिय, दलित और ब्राह्मण वर्ग के चेहरे आगे लाएगी। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में पराजय झेलने के बाद पार्टी प्रदेश में संगठन को दोबारा खड़ा करने की तैयारी कर रहा है। इस दृष्टि से सभी वर्ग के प्रादेशिक चेहरों की नए सिरे से तलाश चल रही है। पार्टी नेताओं का मानना है कि अब प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ और दिग्विजय सिंह जैसे नेता मुख्यधारा में नहीं हैं। ग्वालियर-चंबल अंचल में ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोडने के बाद कोई बड़ा चेहरा बचा नहीं है। ब्राह्मण वर्ग के नेता रहे सुरेश पचौरी कांग्रेस छोड़ चुके हैं। क्षत्रिय नेता और मप्र विधानसभा में दो बार नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह विंध्य में ही पार्टी की उपेक्षा के शिकार हैं। पार्टी केवल आदिवासी वर्ग में उमंग सिंघार और ओमकार सिंह मरकाम जैसे युवाओं को तैयार कर पाई है। ओबीसी वर्ग में भी पार्टी के पास प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी हैं। कांग्रेस की तैयारी है कि भौगोलिक आधार पर हर अंचल का प्रतिनिधित्व तैयार किया जाए। इसमें वर्गवार संतुलन बैठाया जाए।

 

वर्तमान में कोई बड़ा चेहरा नहीं


प्रदेश में कांग्रेस का संगठन दशकों तक श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल, अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह, कमल नाथ, जमुना देवी, माधव राव सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया के इर्द-गिर्द घूमता रहा है लेकिन इनमें से अधिकांश नेता अब नहीं हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुरेश पचौरी, कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले गए। इससे कांग्रेस का पूरा ढांचा चरमरा गया है। जब कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व कमजोर हुआ तो प्रदेश कांग्रेस और बिखरने लगी। कमलनाथ हों या दिग्विजय सिंह, दोनों ने किसी अन्य नेता को आगे आने नहीं दिया। यही वजह है कि इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सफाया होने के बाद पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रदेश में सफाई अभियान चलाने का निर्णय लिया है। इसी रणनीति के तहत महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण कमेटी को भोपाल भेजा गया था। पार्टी अब इसकी अंतरिम रिपोर्ट पर आगे की रणनीति बना रही है। इसके तहत ब्राह्मण, दलित और क्षत्रिय वर्ग के चेहरों को आगे लाया जाएगा। ग्वालियर-चंबल अंचल में ज्योतिरादित्य सिंधिया की भरपाई चुनौती है। यहां से डॉ. गोविंद सिंह कई बार विधायक रहे लेकिन वे जिले के बाहर के नेता नहीं बन पाए। रामनिवास रावत यहां ओबीसी वर्ग के बड़े नेता थे लेकिन वह भी विधायक पद से त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल हो गए और मंत्री बन गए। अब पार्टी यहां जाटव यानी दलित, क्षत्रिय चेहरे तलाश रही है।

 

क्षेत्रवार बड़े चेहरे नहीं

पहले कांग्रेस में हर क्षेत्र में बड़े चेहरे हुआ करते थे। इन चेहरों के कारण क्षेत्र में कांग्रेस का जनाधार बना रहता था। लेकिन अब कांग्रेस ने जातिगत ही नहीं क्षेत्रवार भी चेहरों का अभाव है। मालवा अंचल और मध्य भारत क्षेत्र में भी पार्टी के पास बड़ा चेहरा नहीं है। यहां कांग्रेस के पास तुलसी सिलावट और प्रभुराम चौधरी जैसे दलित चेहरे होते थे लेकिन वे भाजपा में चले गए। महाकोशल में भी अब कमल नाथ का वजन कम हो गया तो यह क्षेत्र भी नेतृत्वविहीन हो गया है। विंध्य में अजय सिंह लंबे समय से पार्टी में हाशिए पर पड़े हैं। वर्ष 2018 में तो वे चुनाव भी हार गए थे। पूर्वी मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह जैसे धाकड़ नेता की उन्होंने विरासत तो संभाली लेकिन पार्टी ने उनका उपयोग नहीं किया। अब पार्टी क्षत्रिय नेता की भरपाई करने के लिए अजय सिंह को आगे लाने पर विचार कर रही है। इसी तरह पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव, कमलेश्वर पटेल को केंद्रीय संगठन में जिम्मेदारी देकर आगे बढ़ाने व अब इन्हें प्रदेश में और भी महत्व देने पर विचार किया जा रहा है।

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