केंद्र में अटकी जल जीवन मिशन की किस्त

भोपाल । घर-घर पीने का शुद्ध पानी पहुंचाने के मकसद से 15 अगस्त 2019 को शुरू की गई जल जीवन मिशन योजना अधर में लटकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना की शुरुआत करते हुए मार्च 2024 तक इसे पूरा करने का लक्ष्य रखा था। लेकिन बजट की कमी से जल जीवन मिशन की रफ्तार थमने लगी है।जल जीवन मिशन में केंद्र से भुगतान की देरी के कारण उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे भाजपा शासित राज्य भी जूझ रहे हैं। राज्यों के खजानों में राशि की कमी है। और इस प्रोजेक्ट को जारी भी रखना है। इसकी अर्थव्यवस्था में राज्यों के वित्त विभाग भी गहन विमर्श कर रहे हैं। जन स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के सचिव ने केंद्र सरकार से दूसरे चरण की बकाया राशि के भुगतान के लिए पत्र लिखा है। दूसरे चरण के पहली किस्त में 600 करोड़ आ चुके है, अभी 1422 करोड़ का बकाया है।

प्रदेश में करीब 70 फीसदी काम बंद
दरअसल, केंद्रीय फंड की कमी और पहले से हो चुके काम का भुगतान न होने के कारण यह योजना अटक गई है। केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना जल जीवन मिशन की रफ्तार प्रदेश में अब मंद पड़ चुकी है। कारण बजट की कमी है। भुगतान नहीं होने से प्रदेश में करीब 70 फीसदी काम बंद हो चुका है। समय रहते राशि जारी नहीं होने पर शेष तीस फीसदी काम भी रूकने की आशंका है। यही वजह है कि लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचई) विभाग ने राज्य के खजाने से 775 करोड़ रुपए मांगे हैं। मालूम हो, केंद्र सरकार ने दूसरे चरण में 600 करोड़ की पहली किस्त अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में जारी की थी। इससे उम्मीद जगी थी कि अब केंद्र से दूसरी और तीसरी किस्त भी जल्द जारी होगी। मगर ऐसा नहीं हुआ।

छोटे ठेकेदारों ने काम समेटा
केंद्र ने इस वित्त वर्ष में मप्र को मिशन के लिए 4,044 करोड़ रु. और राज्य ने 7,671.60 करोड़ रु. का अलॉट किए हैं। जल जीवन मिशन की गाइडलाइन के मुताबिक वर्क ऑर्डर में केंद्र-राज्य का हिस्सा 50-50 प्रतिशत और व्यावसायिक गतिविधियों में 60-40 प्रतिशत होगा। बीते साल जल जीवन मिशन के तहत मप्र में 10,773.41 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। फिलहाल इस योजना के तहत 1500 करोड़ रु. से अधिक राशि का भुगतान रुका हुआ है। पुराने आंकड़ों को देखते हुए 2024-25 में राज्य में इस योजना के लिए कम से कम 17,000 करोड़ रु. की जरूरत होगी। अब जानकारी लगी है कि कम भुगतान के कारण छोटे ठेकेदारों ने काम समेटना शुरू कर दिया है। हालांकि, इस मामले में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और मुख्य सचिव अनुराग जैन बेहद सचेत हैं। सरकार चाहती है कि काम किसी भी स्थिति में रूकना नहीं चाहिए। यही वजह है कि दोनों ने ही क्रमश: राजनीतिक व प्रशासनिक तरीके से केंद्र से बकाया राशि की मांग की है।

पुरानी योजनाओं जैसा हाल न हो जाए
बुंदेलखंड और विंध्य का क्षेत्र हमेशा से ही प्यासा रहा है। पहले भी योजनाएं बनती रही हैं, लेकिन कभी गांव वालों को पानी नहीं मिला। अब जल जीवन मिशन योजना आई तो उम्मीद थी, लेकिन यह भी टूटती जा रही है। हम चित्रकूट जिले के गांव रैपुरा पहुंचे। रैपुरा में जल निगम का पुराना प्रोजेक्ट लगा हुआ है। तकरीबन 4 साल पहले यहां जल निगम ने कुछ घरों में पाइप लाइन डालकर पानी पहुंचाया था। अब फिर से जल जीवन मिशन के तहत यहां दोबारा काम हो रहा है। गांव में छूटे हुए करीब 25 प्रतिशत घरों को आस जगी कि अब यहां इस नई योजना के तहत पानी पहुंच जाएगा। लेकिन, काम करने वाली कंपनी ने फर्जी रिपोर्टिंग करके जल जीवन मिशन की सरकारी वेबसाइट में यहां 100 फीसदी काम पूरा होना बताया। हकीकत में सिर्फ गांव में इधर-उधर खुदाई करके पाइप लाइन डाली गई, बाकी वैसे ही छोड़ दिया गया। केंद्र सरकार ने इस वित्त वर्ष में प्रदेश को 4044 करोड़ और राज्य सरकार ने 7671 करोड़ रूपए दिए। गाइडलाइन में वर्क ऑर्डर में केंद्र और राज्य का हिस्सा 50-50 प्रतिशत और व्यावसायिक गतिविधियों में 60-40 प्रतिशत होता है। बीते साल प्रदेश में इस योजना में 10773 करोड़ खर्च हुए थे। और इस साल योजना के लिए 17000 करोड़ की जरूरत है।  केंद्रीय फंड की कमी और पहले से हो चुके काम का भुगतान न होने के कारण यह योजना अटक गई है। हालांकि, बीते 5 साल में जिन 15.15 करोड़ ग्रामीण परिवारों तक पानी पहुंचाने का दावा है वह भी कागजी है। देखरेख के अभाव में कहीं पर पाइप लाइन चोरी चली गई तो कहीं पर टंकी। इसके अलावा कई जगह तो काम की गुणवत्ता सही नहीं होने की वजह से कुछ दिन में ही योजना ने दम तोड़ दिया। गांवों में कहीं पाइप है तो नल नहीं और नल है तो पाइप नहीं। जहां दोनों हैं वहां पानी नहीं है। बता दें कि शुरुआत में योजना का बजट 3.60 लाख करोड़ रुपए था। इसमें केंद्रीय हिस्सेदारी 2.08 लाख करोड़ और राज्य की 1.52 लाख करोड़ रुपए रही। मिशन के आगे बढऩे के साथ ही दूरदराज के क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा न होने के कारण लागत बढ़ती गई। संशोधित बजट बढक़र 8.33 लाख करोड़ रुपए हो गया। यह अनुमान के दोगुने से ज्यादा है। इसमें केंद्र की हिस्सेदारी 4.33 लाख करोड़ और राज्यों की 4.00 लाख करोड़ रुपया है।

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