भोपाल: अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि यह अवसर है उन उपलब्धियों को सराहने का, जो महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में हासिल हुई हैं। साथ ही, यह दिन हमें यह सोचने का अवसर भी प्रदान करता है कि आगे का रास्ता क्या होना चाहिए।
भारत जैसे देश में, जहाँ नारी को शक्ति और सहनशीलता का प्रतीक माना जाता है, वहाँ जनजातीय महिलाओं के सशक्तिकरण के लिये प्रदेश सरकार मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में संकल्पबद्ध होकर कार्य कर रही है। जनजातीय महिलाएँ अपनी संस्कृति, परंपरा और स्वाभिमान की प्रतीक रही हैं।
सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों के कारण जनजातीय वर्ग की महिलायें लंबे समय तक विकास की मुख्यधारा से दूर रहीं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में सरकार इस दूरी को समाप्त कर रही है। उद्देश्य यह नहीं कि वे केवल लाभार्थी बनें, बल्कि वे समाज की निर्णायक शक्ति बनकर आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश करें।
सशक्तिकरण की दिशा में ठोस कदम –
सरकार की सोच यह नहीं कि महिलाओं को केवल योजनाओं का लाभ मिले, बल्कि वे अपने निर्णय स्वयं ले सकें, अपने व्यवसाय और कार्यक्षेत्र में मजबूती से खड़ी हो सकें। प्रधानमंत्री वन धन योजना के तहत जनजातीय महिलाओं को उनके द्वारा संग्रहीत वन उपज का सही मूल्य दिलाने के लिए सशक्त तंत्र विकसित किया गया है। इससे न केवल उनकी आय बढ़ी है, बल्कि वे अब स्वयं का व्यवसाय भी कर रही हैं।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना ने बालिका शिक्षा को प्राथमिकता दी है, जिससे जनजातीय और ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों के स्कूल छोड़ने की दर में उल्लेखनीय गिरावट आई है। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना गर्भवती महिलाओं को आर्थिक सहायता देकर उनके पोषण और स्वास्थ्य की सुरक्षा कर रही है।
स्टैंड-अप इंडिया योजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को स्व-रोजगार हेतु वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जा रही है, जिससे वे खुद के व्यवसाय की स्थापना कर सकें। मध्यप्रदेश सरकार भी इस दिशा में भी आगे बढ़कर कार्य कर रही है। पीछे नहीं है।
मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना में राज्य सरकार महिलाओं को प्रत्यक्ष आर्थिक सहयोग प्रदान कर रही है, जिससे उनके जीवन स्तर में बड़ा सुधार हुआ है। मुख्यमंत्री आदिवासी महिला उद्यमिता योजना ने जनजातीय महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हर घर जल योजना ने जल संकट से जूझ रही ग्रामीण और जनजातीय महिलाओं के लिए राहत प्रदान की है, जिससे उनका दैनिक जीवन सरल हुआ है।
पेसा अधिनियम ने ग्राम सभाओं में महिलाओं की भागीदारी को मजबूती प्रदान की है, जिससे वे अपने अधिकारों के प्रति अधिक सजग और जागरूक हो रही हैं। अब वे अपनी ग्राम सभाओं में न केवल सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं, बल्कि अपने समुदाय की नीतियाँ तय करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही हैं।
संघर्ष से सशक्त नेतृत्व तक का सफर –
मैं स्वयं एक जनजातीय महिला हूँ। जीवन में संघर्ष मेरे लिए नया नहीं है। बचपन में परिवार की मदद के लिए ईंट-भट्टों पर मजदूरी से लेकर सरपंच, जिला पंचायत अध्यक्ष, राज्यसभा सदस्य और अब मध्यप्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बनने तक का सफर आसान नहीं था। लेकिन मेरी पार्टी का संगठनात्मक सशक्तिकरण और मजबूत नेतृत्व ही है, जिसने मुझे और हमारे समाज की लाखों महिलाओं को आगे बढ़ने के अवसर दिए।
मेरी पार्टी ने सदैव जनजातीय समाज को प्राथमिकता दी है। जब देश को पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति के रूप में श्रीमती द्रौपदी मुर्मु मिलीं, तो यह केवल एक व्यक्ति की नहीं बल्कि पूरे जनजातीय समाज की उपलब्धि थी। यह इस बात का प्रमाण है कि अगर महिलाओं को सही अवसर और संसाधन मिलें, तो वे हर क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकती हैं।
महिला सशक्तिकरण कोई एक दिन की प्रक्रिया नहीं है, यह एक निरंतर चलने वाली यात्रा है। यह केवल व्यक्तिगत विकास तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे समाज और राष्ट्र की उन्नति का आधार है। महिलाओं को केवल लाभार्थी नहीं, बल्कि नीति-निर्माण और निर्णय लेने में भागीदार बनाना ही सही मायनों में सशक्तिकरण है। शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक स्वतंत्रता के साथ समाज में उन्हें सम्मानजनक स्थान दिलाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
आज, जब दुनिया नारी शक्ति का सम्मान कर रही है, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि समाज के सबसे वंचित वर्ग- जनजातीय और अनुसूचित जाति की महिलाएँ-विकास की मुख्यधारा से जुड़ें।
मेरा सभी माताओं, बहनों और बेटियों से आग्रह है कि वे सरकार की योजनाओं का पूरा लाभ उठाएँ, आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाएँ और अपने सपनों को पूरा करने के लिए आगे बढ़ें। जब महिलाएँ आगे बढ़ेंगी, तो समाज और देश भी नई ऊँचाइयों को छुएगा।