इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर बातचीत जारी है।
घटक दलों के बीच सीटों को लेकर आम सहमति बनाने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस पार्टी ने इसके लिए एक टीम का भी गठन किया है, जो कि अलग-अलग राज्यों की रीजनल पार्टी के नेताओं से मुलाकात कर रही है।
शनिवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से मिलने के लिए उनके आवास पर पहुंचे।
इस दौरान राहुल गांधी भी वहां मौजूद थे। ऐसा माना जा रहा है कि दिल्ली में सीट शेयरिंग को लेकर आप और कांग्रेस के बीच सहमति बन गई है।
हालांकि, पंजाब को लेकर स्थिति अभी साफ नहीं हुई है। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि अगर पंजाब में दोनों के बीच गठबंधन नहीं हुआ तो इसका असर इंडिया गठबंधन की सेहत पर पड़ेगा?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजे को विस्तार से समझने की आवश्यक्ता है, जिसमें सपा और कांग्रेस का गठबंधन हुआ था।
इस चुनाव में अखिलेश यादव ने कांग्रेस को 114 सीटें दी थी। वहीं, खुद 311 सीटों पर लड़े थे। परिणाम गठबंधन के खिलाफ साबित हुई।
सपा को 47 और कांग्रेस को सिर्फ सात सीटों पर जीत मिल सकी। इस चुनाव के बाद अखिलेश यादव ने निर्णय लिया कि वह कभी भी राष्ट्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन नहीं करेंगे और छोटे दलों को साथ लेकर चलेंगे। 2022 में उन्होंने यह किया और परिणा 2017 की तुलना में बेहतर साबित हुए।
पश्चिम बंगाल- ममता बनर्जी की नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस लगातार कह रही है कि वह कांग्रेस को दो-तीन से अधिक सीटें नहीं देगी।
यहां अगर कांग्रेस, वाम दल और टीएमसी के बीच सीट शेयरिंग नहीं भी होती है तो इंडिया गठबंधन की सेहत पर इसका असर नहीं होगा। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि यहां टीएमसी और बीजेपी में आमने-सामने की लड़ाई है। कांग्रेस यहां काफी कमजोर है।
वाम दलों का गढ़ भी बीते कुछ चुनावों में ध्वस्त हो चुका है। ऐसे में ममता की पार्टी जितनी अधिक सीटों पर लड़ेगी और जीतेगी तो फायदा इंडिया गठबंधन को ही होगा।
पंजाब- बॉर्डर राज्य पंजाब में आम आदमी पार्टी फिलहाल सबसे बड़ी पार्टी है। यहां उसकी सरकार है। उसने कांग्रेस को हराकर ही यहां सत्ता पर कब्जा किया था। इस राज्य में भाजपा की हैसियत काफी कमजोर है। अकाली दलों के साथ फिलहाल किसी भी दल का गठबंधन नहीं है।
यहां भी कांग्रेस की भाजपा से सीधी लड़ाई नहीं है। ऐसे में पंजाब में चाहे कांग्रेस जीते या फिर आम आदमी पार्टी फायदा इंडिया गठबंधन को ही होगा।
केरल- लेफ्ट पार्टी शासित राज्य केरल की भी ऐसी ही स्थिति है। यहां भारतीय जनता पार्टी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग से भी कमजोर है। यहां असली लड़ाई कांग्रेस और वामपंथी दलों के गठबंधन के बीच है। 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का खाता तक नहीं खुला था।
ऐसे में अगर यहां भी कांग्रेस और वामपंथी दलों के बीच गठबंधन नहीं होता है तो इंडिया गठबंधन को कोई नुकसान नहीं है। हां, साथ लड़ने पर बीजेपी को यहां पैर पसाड़ने का मौका जरूर मिल सकता है।
तमिलनाडु- अब बात तमिलनाडु की। यहां की राजनीति में डीएमके, एआईडीएमके और कांग्रेस के बाद भाजपा का स्थान आता है। यहां भी भाजपा के साथ कांग्रेस की सीधी लड़ाई नहीं है। यहां कांग्रेस हो या भाजपा गठबंधन में ही चुनाव लड़ती रही है।
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