उत्तरी समुद्री मार्ग से व्यापार को बढ़ावा देने के लिए भारत और रूस के वर्किंग ग्रुप्स की मीटिंग में समझौता ज्ञापन तैयार कर लिया गया है।
दोनों ही देश नए समुद्री गलियारे को विकसित करने की दिशा में काम कर रहे हैं। इस नए समुद्री रास्ते से दोनों मित्र राष्ट्रों के बीच की दूरी भी कम होगी, जिससे व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।
वर्तमान समय में दोनों देशों के व्यापार का एक बड़ा हिस्सा लाल सागर से होकर गुजरता है, लेकिन उस क्षेत्र में चल रही युद्ध की आशंका के बीच व्यापार पर संकट और भी ज्यादा बढ़ गया है।
वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए रूस की तरफ से इस परियोजना पर पिछले कई सालों से काम करने की कोशिश की जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन के बीच जुलाई में हुई शिखर वार्ता में आपसी सहयोग पर द्विपक्षीय अंतर सरकारी आयोग के तहत उत्तरी समुद्री मार्ग पर एक कार्य समूह स्थापित करने का निर्णय लिया गया था।
10 अक्टूबर को इस कार्य समूह की पहली बैठक नई दिल्ली में आयोजित की गई, जिसमें इस समुद्री रास्ते के साथ भारतीय और रूसी शिपमेंट के लक्ष्य, आर्कटिक जहाज निर्माण के लिए संयुक्त परियोजनाएं और पोलर नेविगेशन के लिए भारतीय नाविकों के ट्रेनिंग सेशन के बारे में भी चर्चा की गई।
भारत की ऊर्जा आपूर्ति होगी सुनिश्चित
उत्तरी समुद्री मार्ग यूरेशिया के पश्चिमी भाग को इंडो पैसेफिक को जोड़ने वाला सबसे छोटा समुद्री रास्ता है। रूसी सरकार ने 2018 में इस मार्ग के लिए बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए राज्य संचालित परमाणु ऊर्जा एजेंसी रोसाटॉम को नियुक्त किया था।
दो भारतीय अधिकारियों ने नाम न छपने की शर्त पर बताया कि उत्तरी समुद्री मार्ग और पूर्वी समुद्री गलियारे दोनों में रुचि रखता है क्योंकि यह दोनों ही रूस से आने वाली ऊर्जा आपूर्ति को सुनिश्चित करते हैं।
भारत के लिए यह गलियारे इस लिहाज से और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि भारत और रूस का ज्यादातर व्यापार स्वेज नहर और लाल सागर के माध्यम से पूरा होता है और क्योंकि इस क्षेत्र में लगातार युद्ध की स्थिति बनी हुई है, इस कारण से व्यापार प्रभावित हो रहा है।
अधिकारियों ने कहा कि भारत अपने व्यापारिक रास्तों में लगातार रुकावट बर्दाश्त नहीं कर सकता इसलिए वह सभी वैकल्पिक मार्गों को विकसित करने का इच्छुक है।
दोनों देशों के व्यापार को और बढ़ाएगा उत्तरी समुद्री मार्ग
अधिकारी के मुताबिक उत्तरी समुद्री मार्ग इस समय और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि पिछले सालों में भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2016-17 में 7.5 बिलियन था जो कि अब बढ़कर 65 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया है।
इसका मुख्य कारण भारत का रूस से बढ़ता तेल आयात ही है। इस समुद्री मार्ग के खुल जाने से भारत की ऊर्जा आपूर्ति निर्बाद रूप से बनी रहेगी।
इसके अलावा, तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) जैसी भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने साइबेरिया के सखालिन और टॉम्स्क क्षेत्र में तेल और गैस संपत्तियों में निवेश किया है। उन्हें भी इस मार्ग से मदद होगी।
दोनों देशों ने तैयार किया मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग
दोनों देशों के कार्य समूहों के बीच हुई इस बैठक में भारत की तरफ से बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव राजेश कुमार सिन्हा ने की, जबकि रूस की तरफ से आर्कटिक विकास के लिए रोसाटॉम के विशेष प्रतिनिधि व्लादिमीर पानोव शामिल हुए।
बैठक के बाद एक बयान में कहा गया कि कार्यसमूह ने दोनों देशों की सरकारों की तरफ से नॉर्थ सी रूट के लिए एक समझौता ज्ञापन का मसौदा तैयार कर लिया है।
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