पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब पुलिस के कांस्टेबल की आतंकियों से करीबी के आधार पर 1984 में जारी बर्खास्तगी के आदेश को 40 साल बाद भी बरकरार रखा है।आरोप के अनुसार कांस्टेबल ने जरनैल सिंह भिंडरांवाले से आतंकवाद के दौर में दो पिस्तौलें ली थीं, जिसमें से एक आतंकी को दी थी और दूसरी नहर में फेंक दी थी।पंजाब सरकार ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए सिविल सूट में जारी डिक्री को चुनौती दी थी, जिसके तहत कांस्टेबल जसविंदर सिंह की बर्खास्तगी के आदेश को 1984 में रद्द कर दिया गया था। पंजाब सरकार ने बताया कि जसविंदर 1977 में पंजाब पुलिस में कांस्टेबल नियुक्त हुआ था।
इसके बाद उसके खिलाफ शस्त्र अधिनियम में एफआईआर दर्ज की गई थी और इसी को आधार बनाते हुए अक्टूबर 1984 को उसे बर्खास्त कर दिया गया।पंजाब सरकार ने यह तर्क दिया कि सार्वजनिक व्यवस्था और राज्य की सुरक्षा बनाए रखने के लिए बर्खास्तगी कानूनी और वैध थी। जसविंदर का जरनैल सिंह भिंडरावाले से संबंध था, लेकिन हथियार की बरामदगी न होने के कारण शस्त्र अधिनियम का मामला वापस ले लिया गया था। जसविंदर सिंह ने तर्क दिया कि उसे बर्खास्त करते हुए विभागीय जांच नहीं की गई जो संविधान के अनुच्छेद 311 (2) के तहत अनिवार्य थी।
इस आदेश को उसने सिविल सूट दाखिल करते हुए चुनौती दी थी और सिविल सूट की डिक्री उसके पक्ष में आई थी।हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए पंजाब पुलिस के लगभग 40 साल पुराने बर्खास्तगी के आदेश को बरकरार रखा है। हाईकोर्ट ने माना कि कांस्टेबल जसविंदर सिंह की बर्खास्तगी का आधार उसका आतंकवादियों से संपर्क होना था। उस समय, पंजाब में आतंकवाद अपने चरम पर था, इसलिए पुलिस अधिकारी के खिलाफ नियमित जांच न करने के लिए पर्याप्त आधार थे। जांच में लंबा समय लग सकता था और उन दिनों उसे सेवा में रखना जोखिम भरा हो सकता था और जनहित में नहीं था।