चीन-ताइवान विवाद में अब जापान की भी एंट्री हो गई है।
हाल ही में जापानी युद्धपोत ‘साजनामी’ ने पहली बार विवादित क्षेत्र ताइवान जलडमरूमध्य में प्रवेश किया है, जिससे नई टेंशन बढ़ गई है।
जापान का कहना है कि यह कदम अंतरराष्ट्रीय जल सीमाओं में अपने नौसेना के अधिकारों को सुदृढ़ करने के लिए उठाया गया है।
द्वितीय विश्व युद्ध यानी 1944 के बाद यह पहली बार है जब जापानी युद्धपोत ने ताइवान जलडमरूमध्य में कदम रखा है।
अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, गुरुवार को, पूर्व चीन सागर से सजानामी युद्धपोत ताइवान जलडमरूमध्य में प्रवेश कर गया।
180 किलोमीटर लंबे इस जलडमरूमध्य में पिछले बुधवार को ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के सैन्य जलपोत भी देखे गए थे। ध्यान देने वाली बात यह है कि इन तीनों देशों को अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में अमेरिका के करीबी और चीन विरोधी के रूप में जाना जाता है।
पिछले सप्ताह, एक चीनी विमान वाहक और दो अन्य युद्धपोतों ने ताइवान के निकट जापान के जलक्षेत्र में प्रवेश किया था। इससे पहले, अगस्त में चीनी वायुसेना का एक निगरानी विमान जापान के एयरस्पेस में घुस आया था।
टोक्यो ने इन दोनों मामलों में विरोध जताया, जबकि बीजिंग का कहना था कि ये कदम अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत हैं। ऐसे में जापान का यह हालिया कदम चीन के बढ़ते सैन्य गतिविधियों का जवाब माना जा रहा है।
इससे पहले, मई में चीन ने बिना किसी पूर्व सूचना के ताइवान के सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्य अभ्यास शुरू किया था, जिससे क्षेत्र में फिर से तनाव का माहौल बन गया।
पिछले दो वर्षों में चीन ने ताइवान जलडमरूमध्य के माध्यम से ताइवान की जल और वायु सीमाओं का बार-बार उल्लंघन किया है।
2022 के अगस्त में अमेरिकी कांग्रेस के स्पीकर नैन्सी पेलोसी के ताइवान दौरे के बाद भी तनाव बढ़ा था, जिसके बाद चीनी युद्ध विमानों ने लगातार ताइवान की एयरस्पेस का उल्लंघन करना शुरू कर दिया था।
चीन-ताइवान संकट के बीच, अमेरिकी नौसेना के कुछ युद्धपोत भी ताइवान जलडमरूमध्य में प्रवेश कर चुके हैं।
हालांकि, दोनों पक्षों ने हाल ही में स्थिति को कुछ हद तक शांत करने का प्रयास किया था लेकिन इस साल ताइवान के आम चुनावों में कड़े चीन विरोधी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) के जीत के बाद फिर से तनाव बढ़ गया है।
चीन का दावा है कि ताइवान उसकी विद्रोही भूमि है और जरूरत पड़ने पर वह बल प्रयोग कर ताइवान को अपनी मुख्य भूमि में शामिल करने के लिए प्रतिबद्ध है। दूसरी ओर, ताइवान की मौजूदा सरकार अपने रुख पर अड़ी हुई है।
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