प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रूस यात्रा के बाद भारत-अमेरिका संबंधों में असहजता के कुछ संकेत देखने को मिले हैं।
अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन ने हाल ही में कहा था कि भारत का एक लंबे समय के लिए रूस पर भरोसा करना सही निर्णय नहीं है।
इसके अलावा, भारत में तैनात अमेरिकी राजूदत एरिक गार्सेटी की धमकी भरा लहजा देखने को मिला है। गार्सेटी ने गुरुवार को दिल्ली में एक कार्यक्रम में कहा कि जब दूसरे देश नियमों पर आधारित व्यवस्था के खिलाफ जाते हैं तो भारत और अमेरिका को लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कायम रखना चाहिए।
इसके बाद अब बारी भारत की थी। मोर्चा खुद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने संभाला। उन्होंने शुक्रवार को अपने अमेरिकी समकक्ष जेक सुलिवन के साथ फोन पर बातचीत की।
विदेश मंत्रालय ने बताया कि डोभाल और सुलिवन ने शांति और सुरक्षा की दिशा में वैश्विक चुनौतियों से निपटने और भारत-अमेरिका व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी को और विस्तार देने के लिए सामूहिक रूप से काम करने की आवश्यकता दोहराई।
इसके बाद अब बारी भारत की थी। मोर्चा खुद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने संभाला। उन्होंने शुक्रवार को अपने अमेरिकी समकक्ष जेक सुलिवन के साथ फोन पर बातचीत की।
विदेश मंत्रालय ने बताया कि डोभाल और सुलिवन ने शांति और सुरक्षा की दिशा में वैश्विक चुनौतियों से निपटने और भारत-अमेरिका व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी को और विस्तार देने के लिए सामूहिक रूप से काम करने की आवश्यकता दोहराई।
क्या कहा था अमेरिकी एनएसए ने?
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हाल की मास्को यात्रा के बारे में टीवी चैनल ‘एमएसएनबीसी’ पर पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए यह टिप्पणी की। सुलिवन ने कहा, ‘‘हमने भारत समेत दुनिया के हर देश को यह स्पष्ट कर दिया है कि दीर्घकालिक, भरोसेमंद साझेदार के रूप में रूस पर भरोसा करना अच्छा दांव नहीं है।’’
सुलिवन पिछले महीने भारत के अपने समकक्ष अजीत डोभाल के साथ बैठक के लिए भारत आए थे। शीर्ष अमेरिकी अधिकारी ने अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी से भी मुलाकात की थी। सुलिवन ने कहा, ‘‘रूस चीन के करीब होता जा रहा है। वास्तव में, यह चीन का साझेदार बनता जा रहा है। इस तरह, वे हमेशा भारत के बजाय चीन का पक्ष लेंगे।’’
उन्होंने हालांकि माना कि भारत जैसे देशों के रूस के साथ ऐतिहासिक संबंध हैं और यह स्थिति नाटकीय रूप से रातों-रात बदलने वाली नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी 22वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए दो दिन के लिए रूस में थे और यूक्रेन में जारी संघर्ष के बीच उनकी इस यात्रा पर पश्चिमी देशों की भी करीबी नजर रही है।
पुतिन के साथ मंगलवार को वार्ता के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने रूसी राष्ट्रपति से कहा कि यूक्रेन संघर्ष का समाधान युद्ध के मैदान में संभव नहीं है और शांति प्रयास बम तथा गोलियों के बीच सफल नहीं होते।
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