नई दिल्ली । दिल्ली में सिस्टम क्यों नहीं काम कर रहा है, इसकी जांच के लिए गठित अपनी ही कमिटी की रिपोर्ट से दिल्ली हाई कोर्ट बुधवार को निराश दिखा। कोर्ट ने अपने 2 अगस्त के आदेश को गलत तरीके से लेने पर अफसोस जताया। कमिटी को सभी पहलुओं पर सप्लिमेंट्री रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 10 दिन का वक्त देते हुए हाई कोर्ट ने चेताया कि वह राष्ट्रीय राजधानी में एजेंसियों की बहुलता के मुद्दे की जांच भारत सरकार के कैबिनेट सेक्रेटरी को सौंप देगा। चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच ने कहा, पूरी रिपोर्ट में नालों के बारे में बताया गया है। हमें लगता है कि हमारे आदेश को गलत रूप में लिया गया है। हमने उसमें विभिन्न एजेंसियों के बीच कोऑर्डिनेशन की कमी वाले कई सारे उदाहरण दिए थे। सभी एजेंसियों के बीच समन्वय बने। कोई एक ऐसा बोर्ड हो जिसमें एनडीएमसी, एमसीडी, कंटोनमेंट बोर्ड, डूसिब आदि सभी के प्रमुख शामिल हों और वे अपने काम में आ रही बाधाओं पर आपस में बात करें। कोर्ट ने संबंधित एजेंसियों से कहा कि हमें सभी मुद्दों से जुड़ी रिपोर्ट चाहिए, वरना हम इस मुद्दे को कैबिनेट सेक्रेटरी को जांच के लिए सौंप देंगे, जो देखेंगे कि कोआर्डिनेशन में कहां समस्या आ रही है। दिल्ली सरकार के स्थायी वकील संतोष कुमार त्रिपाठी ने कमिटी की रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी। कोर्ट ने आदेश में कहा कि इसे देखने से पता चला कि यह दिल्ली के ड्रेनेज सिस्टम के मुद्दे तक ही सीमित है। हालांकि, इस कोर्ट ने कमिटी से दिल्ली के फिजिकल और फाइनेंशल इन्फ्रास्ट्रक्चर को रिव्यू करने के लिए कहा था।