देश में शिक्षा का तेजी से व्यवसायीकरण हो रहा है और कोचिंग संस्थानों की भूमिका उसमें काफी अहम है. सरकार कोचिंग कल्चर को गलत मानती है और उसे हतोत्साहित करने की दिशा में प्रयास करने का दावा करती आई है. हालांकि दिल्ली में बीते दिनों एक कोचिंग संस्थान में हुआ हादसा अलग ही कहानी कहता है. उसके बाद अब सरकार ने कोचिंग बिजनेस को लेकर संसद में कुछ आंकड़े पेश किए हैं, जो हादसे से निकली कहानी में नए आयाम जोड़ते हैं.
5 साल में 146 फीसदी बढ़ा जीएसटी कलेक्शन
केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री डॉ सुकान्त मजूमदार ने कोचिंग उद्योग से जुड़े सवालों का जवाब देते हुए 31 जुलाई को संसद में बताया कि बीते 5 सालों में कोचिंग कल्चर बेतहाशा बढ़ा है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, कोचिंग संस्थानों से सरकार को वित्त वर्ष 2019-20 में 2,240.73 करोड़ रुपये की कमाई जीएसटी के रूप में हुई थी. जीएसटी का यह कलेक्शन बढ़कर पिछले वित्त वर्ष यानी 2023-24 में 5,517.45 करोड़ रुपये पर पहुंच गया. यानी पिछले 5 सालों में कोचिंग से जीएसटी के कलेक्शन में 146 फीसदी से ज्यादा की तेजी आई है.
वित्त वर्ष | जीएसटी कलेक्शन (करोड़ रुपये में) |
2019-20 | 2,240.73 |
2020-21 | 2,215.24 |
2021-22 | 3,045.12 |
2022-23 | 4,667.03 |
2023-24 | 5,517.45 |
कोचिंग संस्थानों पर सरकार 18 फीसदी की दर से जीएसटी वसूल करती है. जीएसटी कलेक्शन में साल-दर-साल आती गई तेजी बताती है कि उनका बिजनेस कितनी तेजी से बढ़ा है.
नई शिक्षा नीति में की गई ये सिफारिश
नई शिक्षा नीति 2020 के तहत कोचिंग कल्चर को गलत मानते हुए उसे हतोत्साहित करने की सिफारिश की गई है. मंत्री भी इस बात को स्वीकार करते हैं और अपने जवाब में बताते हैं कि नई शिक्षा नीति 2020 की सिफारिशों का उद्देश्य कोचिंग संस्कृति का उन्मूलन है. सिफारिशें आने के बाद अब तक के 5 सालों में कोचिंग सेंटर का सरकारी खजाने में योगदान डबल से ज्यादा हो गया है.
सरकार के स्तर पर हुईं कई खामियां
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डी मंजीत कहते हैं कि कोचिंग कल्चर को बढ़ावा देने के लिए मौजूदा शिक्षा व्यवस्था जिम्मेदार है. शिक्षा का बौद्धिक विकास से नाता टूट गया है और बच्चों के ऊपर एक परीक्षा के बाद दूसरी परीक्षा पास करने का प्रेशर है. ऐसे में वे और उनके परिजन कोचिंग का रुख करते हैं. कोचिंग संस्थानों को लेकर सरकार के पास स्पष्ट रेगुलेशन तक नहीं है. हालांकि साथ में वह ये भी जोड़ते हैं कि दिल्ली में जो हादसा हुआ, उसमें कई स्तरों पर सरकार की खामियां सामने आती हैं. वहां कोचिंग क्लास की जगह कोई और भी आयोजन होता, तब भी इस तरह का हादसा होता.
पहला कदम उठाने में लगे 4 साल
एनईपी 2020 की बात करें तो उसमें भी रेगुलेशन की अस्पष्टता को लेकर चिंताएं व्यक्त की गई थीं, लेकिन सरकार को इस दिशा में पहला कदम उठाने में पूरे 4 साल लग गए. बकौल केंद्रीय मंत्री मजूमदार, शिक्षा मंत्रालय ने 16 जनवरी 2024 को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कोचिंग सेंटर के विनियमन के लिए निर्देश दिया. सरकार के निर्देश कोचिंग के शुल्क से लेकर टाइमिंग आदि के लिए हैं.
सरकार से और सख्ती चाहते हैं शिक्षाविद
देश के जाने-माने शिक्षाविद डॉ अमित कुमार निरंजन कोचिंग के व्यवसाय पर सरकार से और सख्ती की अपेक्षा रखते हैं. वह बताते हैं कि कोचिंग का कारोबार किसी भी इंडस्ट्री की तुलना में सबसे तेज तरक्की कर रहा है. कोचिंग सेंटर हर साल 20-25 फीसदी फीस बढ़ाते हैं, लेकिन सुविधाएं मुहैया नहीं करा पाते हैं. डॉ निरंजन के अनुसार, कोचिंग का काम काउंसिलिंग का होना चाहिए, लेकिन उनका उद्देश्य पूरी तरह से कमर्शियल हो गया है. वे बच्चे को करियर के बारे में सही परामर्श देने का काम छोड़ चुके हैं और उनका ध्यान सिर्फ और सिर्फ ज्यादा कमाई करने पर है.