अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने ‘रिजॉल्व तिब्बत बिल पर हस्ताक्षर कर स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि तिब्बत और चीन के बीच विवाद का शांतिपूर्ण तरीके से समाधान किया जाएगा। इसे लेकर निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रमुख पेंपा सेरिंग ने दावा किया है कि अमेरिका के इस कदम से चीन बुरी तरह से आहत हुआ है। उन्होंने कहा कि यह चीन के लिए एक बड़े झटके की तरह है। आपको बता दें कि ‘रिजॉल्व तिब्बत बिल’ में तिब्बत पर चीन के जारी कब्जे के शांतिपूर्ण समाधान के लिए दलाई लामा या उनके प्रतिनिधियों के साथ बिना किसी पूर्व शर्त के सीधी बातचीत फिर शुरू करने का आह्वान किया गया है। हालांकि, चीन ने इस इस एक्ट का विरोध किया और इसे अस्थिरता पैदा करने वाला बताया है। पेंपा सेरिंग ने रिजॉल्व तिब्बत बिल पर चीन की प्रतिक्रिया का उल्लेख कर टिप्पणी की है। उधर, चीन ने कहा है कि इस बिल की वजह से उसके घरेलू मामलों में हस्तक्षेप होगा। पेंपा सेरिंग ने कहा, ‘अमेरिका का राष्ट्रपति जो बाइडन ने रिजॉल्व तिब्बत बिल पर हस्ताक्षर किए। इससे पहले चीन ने बाइडन से कहा था कि दस्तावेज पर हस्ताक्षर ना करें। अब हस्ताक्षर के बाद चीन का कहना है कि इस बिल को लागू ना करें।’ सेरिंग ने रिजॉल्व तिब्बत बिल पर विश्वास जताते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने दावा किया कि इस कदम से चीन उल्लेखनीय रूप से अलग-थलग पड़ जाएगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि चीन आगे भी इस बिल का जबरदस्त विरोध करेगा। तिब्बत ने वर्ष 2021 से ही इस मामले पर अपनी रणनीति में बदलाव किया था। सेरिंग ने कहा, ‘जब हमने वर्ष 2021 में कार्यभार संभाला तो यह हमारी रणनीति का एक हिस्सा था। कोरोना के प्रतिबंधों के हटने के बाद वर्ष 2022 में मैं अमेरिका गया और उस दौरान हमने अमेरिका सरकार से के प्रतिनिधियों से मुलाकात की। हमने उन्हें बताया कि हमारी आगे की रणनीति क्या होने वाली है। हमारी रणनीति यह थी कि हमने इस मुद्दे पर मुखर होकर अपना पक्ष रखा। राजनीति, समाज, आर्थिकी, शिक्षा या कोई भी मुद्दा हो, हमने मुखर होकर अपनी बात रखी।’
चीन ने अमेरिका को दी थी चेतावनी
जून में चीन ने इस विधेयक को लेकर अमेरिका को चेतावनी दी थी। चीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति से कहा था कि वह इस विधेयक पर हस्ताक्षर न करें। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा, यह कानून चीन के घरेलू मामलों में घोर हस्तक्षेप करता है। कोई भी व्यक्ति या कोई भी ताकत जो चीन को नियंत्रित करने या दबाने के लिए जिजांग (तिब्बत का चीनी नाम) को अस्थिर करने का प्रयास करेगी, सफल नहीं होगी। चीन अपनी संप्रभुता, सुरक्षा और विकास हितों की रक्षा के लिए दृढ़ कदम उठाएगा। तिब्बत के चौदहवें दलाई लामा 1959 में तिब्बत से भागकर भारत आ गए, जहां उन्होंने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासित सरकार स्थापित की। 2002 से 2010 तक दलाई लामा के प्रतिनिधियों और चीनी सरकार के बीच नौ दौर की वार्ता हुई, लेकिन कोई ठोस परिणाम नहीं निकला। चीन, भारत में रह रहे 89 वर्षीय तिब्बती आध्यात्मिक नेता को एक ‘अलगाववादी’ मानता है, जो तिब्बत को देश (चीन) के बाकी हिस्सों से अलग करने के लिए काम कर रहे हैं। जबकि चीन इस क्षेत्र में धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषाई और राजनीतिक दमन में जुटा हुआ है।