बंटेंगे तो कटेंगे के नारे को बीजेपी और शिवसेना का समर्थन, अजित का विरोध

मुंबई । महाराष्ट्र चुनावी माहौल में सत्ताधारी महायुति की दो प्रमुख पार्टियां, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और एकनाथ शिंदे की शिवसेना, हिंदुत्व के एजेंडे पर जोर दे रही हैं। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा दिए गए बंटेंगे तो कटेंगे के नारे को बीजेपी और शिवसेना ने समर्थन दिया, जबकि महायुति के ही एक घटक, अजित पवार गुट वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने इसका मुखर विरोध किया है। पवार ने कहा, यह नारा यूपी या झारखंड में चल सकता है, लेकिन महाराष्ट्र में नहीं चल सकता है। चुनाव प्रचार के बीच अजित का यह विरोध महायुति में दरार का संकेत हो सकता है, लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि क्या उनका यह स्टैंड महायुति के अंदर एक लार्जर गेमप्लान का हिस्सा है?
महायुति के प्रमुख घटक दलों, बीजेपी और शिवसेना, हिंदुत्व की आक्रामक रणनीति पर जोर दे रहे हैं, जबकि अजित गुट का रुख इससे अलग है। अजित के इस स्टैंड को कुछ लोग महायुति के अंदर एक न्यूट्रल तार की भूमिका के रूप में देख रहे हैं। इस दृष्टिकोण के मुताबिक, अजित का विरोध चुनावी रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जो महायुति के भीतर राजनीतिक संतुलन बनाए रखने का काम कर रहा है।
महाराष्ट्र में महायुति के तीन घटक दलों, बीजेपी, शिवसेना, और एनसीपी, के बीच इस तरह के मतभेदों के बावजूद, एक हालिया विज्ञापन में इन तीनों दलों के चुनाव चिह्नों के साथ महाराष्ट्र के विभिन्न समुदायों के प्रतीक भी दिखाए गए। इस विज्ञापन में विशेष बात यह रही कि मुस्लिम समुदाय का प्रतीक टोपी शामिल नहीं थी, जो कि एक बड़ा संदेश था। इसके बावजूद, अजित पवार की तस्वीर भी विज्ञापन में शामिल की गई, जो महायुति की एकता को दिखाता है, भले ही उनके व्यक्तिगत रुख में भिन्नता रही है। 
अजित का यह बयान सबका साथ, सबका विकास के समर्थन में था, जो बीजेपी और शिवसेना के हिंदुत्व एजेंडे के विपरीत था। लेकिन संभव है कि उनका यह स्टैंड महायुति की समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता की छवि को बनाए रखने का एक रणनीतिक हिस्सा हो। इसके बाद अजित का विरोध महायुति की कुल मिलाकर वोटबैंक रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जो विभिन्न सामाजिक और धार्मिक समुदायों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रही है।

महायुति की बड़ी राजनीतिक रणनीति
अजित का विरोध महायुति के अंदर एक निश्चित संतुलन बनाए रखने की कोशिश हो सकता है। एक ओर बीजेपी और शिवसेना हिंदुत्व की पिच पर खेल रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ अजित की पार्टी समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष रुख अपनाए हुए हैं। यह राजनीतिक संतुलन न केवल राज्य की जटिल जातीय और धार्मिक संरचना को ध्यान में रखकर हो सकता है, बल्कि महायुति के लंबे समय तक चुनावी फायदा हासिल करने के लिए भी जरूरी हो सकता है। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *