सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे के जटिल मुद्दे पर सुनवाई शुरू की।
अपना पक्ष रखते हुए केंद्र सरकार ने न्यायालय में कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के ‘राष्ट्रीय चरित्र’ को देखते हुए यह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता।
साल 2016 में केंद्र सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जे के लिए अपना समर्थन वापस ले लिया था।
अब केंद्र सरकार ने कहा कि उसका वह निर्णय “केवल संवैधानिक विचारों” पर आधारित था क्योंकि पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार का इसके लिए कानूनी रूप से लड़ने का रुख “सार्वजनिक हित के खिलाफ था” और हाशिये पर पड़े वर्गों के लिए आरक्षण की सार्वजनिक नीति के विपरीत था।
इस दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि कोई शिक्षण संस्थान किसी कानून द्वारा विनियमित है, महज इसलिए उसका अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा समाप्त नहीं हो जाता।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस जटिल मुद्दे की सुनवाई कर रही है।
पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 30 का जिक्र किया जो शिक्षण संस्थानों की स्थापना और उनके संचालन के अल्पसंख्यकों के अधिकारों से संबंधित है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 30 को प्रभावी बनाने के लिए किसी अल्पसंख्यक समूह को इस तरह के दर्जे का दावा करने के लिए स्वतंत्र प्रशासन की जरूरत नहीं है।
केंद्र ने कहा कि एएमयू किसी धर्म विशेष या धार्मिक प्रभुत्व का विश्वविद्यालय नहीं है और ना ही हो सकता क्योंकि राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित कोई विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत में अपनी लिखित दलीलों में कहा कि विश्वविद्यालय हमेशा से, यहां तक कि आजादी के पहले के कालखंड में भी राष्ट्रीय महत्व का संस्थान रहा है।
एएमयू की स्थापना 1875 में हुई थी। शीर्ष अदालत ने 12 फरवरी, 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे के विवादास्पद मुद्दे को सात न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया था।
1981 में भी इसी तरह के मामले को संदर्भित किया गया था। संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे का मुद्दा कई दशकों से कानूनी विवाद में फंसा है।
इस बात पर जोर देते हुए कि केंद्र में सरकार बदलना रुख में बदलाव के लिए महत्वहीन है, एनडीए सरकार ने कहा कि केंद्र सरकार को कभी भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2006 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में एक अलग अपील दायर नहीं करनी चाहिए थी, जिसमें कहा गया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है और न ही कभी रहा है।
केंद्र ने कहा कि पिछली सरकार का रुख 1967 में अजीज बाशा मामले में पांच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले के विपरीत था।
सुप्रीम कोर्ट ने बाशा मामले में एएमयू की अल्पसंख्यक स्थिति के खिलाफ फैसला सुनाया, यह देखते हुए कि विश्वविद्यालय न तो मुस्लिम अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित किया गया था और न ही प्रशासित किया गया था।
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