ताइवान पर अपना दावा करने वाला चीन राष्ट्रपति लाइ चिंग ते के अमेरिका दौरे पर बिफर गया है।
अमेरिका के हवाई प्रांत में ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग ते का जोरदार स्वागत किया गया है। वह दो दिन के दौरे पर अमेरिका पहुंचे हैं।
यह दौरा इसलिए भी खास है क्योंकि पदभार ग्रहण करने के बाद यह लाई चिंग का पहला विदेश दौरा है। अमेरिका ताइवान का हमेशा से ही पक्ष लेता रहा है जो बात चीन को नागवार गुजरती है।
हाल ही में अमेरिका ने ताइवान को और अधिक हथियार बिक्री के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। ऐसे में चीन को डबल झटका लगा है।
अमेरिकी विदेश विभाग ने ताइवान को एफ-16 विमान और रडार के लिए स्पेयर्स पार्ट के लिए लगभग 385 मिलियन डॉलर की बिक्री को मंजूरी दे दी है। वहीं चीन इस मामलो के लकर अमेरिका को धमकी देने लगा है।
चीन ने ताइवानी राष्ट्रपति के हवाई में रुकने तथा गुआम की यात्रा की चीन ने कड़ी आलोचना की है, जो ताइवान को अपना क्षेत्र बताता है।
इस स्वशासित लोकतांत्रिक द्वीप को अमेरिका द्वारा समर्थन और सैन्य सहायता दी जाती है। चीन दोनों पक्षों के आधिकारिक आदान-प्रदान पर आपत्ति जताता है।
लाई मार्शल द्वीप, तुवालु और पलाऊ की एक सप्ताह की यात्रा पर आए हैं जिनके साथ ताइवान का औपचारिक राजनयिक संबंध है। ताइवान के दर्जनों अन्य देशों के साथ मजबूत संबंध है लेकिन उसके केवल 12 औपचारिक राजनयिक सहयोगी हैं।
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि अगर अमेरिका ताइवान जलडमरूमध्य में शांति बनाए रखना चाहता है तो उसके लिए ताइवान मुद्दे को ‘ताइवान के स्वतंत्र देश होने का सीधे तौर पर विरोध करते हुए और चीन के शांतिपूर्ण एकीकरण का समर्थन करते हुए बेहद सावधानी से’ संभालना महत्वपूर्ण है।
माओ ने कहा कि चीन अमेरिका और ताइवान के बीच किसी भी तरह की आधिकारिक बातचीत और किसी भी कारण से ताइवान के नेताओं की अमेरिका की यात्रा का विरोध करता है। जब उनकी पूर्ववर्ती, साइ इंग-वेन पिछले साल मध्य अमेरिका की यात्रा के दौरान अमेरिका में रुकीं, तो चीन ने कहा कि वह गहरी नजर रखे हुए है और वह “अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की दृढ़ता से रक्षा करेगा।”
चीनी सेना ने पिछले साल ताइवान के आसपास अभ्यास भी शुरू किया था, जो कि “अलगाववादियों और विदेशी ताकतों” के बीच समन्वय को लेकर एक “कड़ी चेतावनी” थी। यह अभ्यास ताइवान की तत्कालीन उपराष्ट्रपति लाइ के अमेरिका प्रवास के बाद शुरु हुआ था।
चीन ताइवान के नेताओं द्वारा इस तरह के अमेरिकी पड़ावों और साथ ही प्रमुख अमेरिकी राजनेताओं द्वारा द्वीप की यात्रा करने पर कड़ी आपत्ति जताता है, और इसे वाशिंगटन द्वारा 1979 में ताइपे से बीजिंग को अपनी औपचारिक मान्यता बदलने के बाद ताइवान को राजनयिक दर्जा न देने की अमेरिकी प्रतिबद्धता का उल्लंघन बताता है।
चीनी दबाव के कारण अपने राजनयिक भागीदारों की संख्या में कमी आती देख, ताइवान ने अंतरराष्ट्रीय मंचों में भाग लेने के प्रयासों को दोगुना कर दिया है।
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