पिथौरागढ़. थलकेदार पिथौरागढ़ का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल एवं प्रसिद्ध प्राचीन शिव मंदिर है, जो पिथौरागढ़ से लगभग 16 किमी कि दुरी पर बड़ाबे गांव की ऊंची चोटी पर 2100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह धार्मिक स्थान अपने स्वयंभू शिवलिंग के लिए सबसे प्रसिद्ध है, जो 1000 मिलियन वर्ष पुराना माना जाता है. उत्तराखंड में ऐसा दूसरा शिवलिंग केदारनाथ में ही है. जिस कारण थलकेदार को यहां शिवधाम के रूप में केदारनाथ जैसा ही महत्व मिला हुआ है.थलकेदार शिव मंदिर की गिनती प्राचीनतम मंदिरों में होती है, जिसका वर्णन स्कंदपुराण के मानसखंड के अध्याय 133 में दिया गया है. स्कंदपुराण में लिखा है कि सरयू और काली नदी के संगम का सबसे ऊंचा शिखर स्थाकिल पर्वत है, जहां महादेव अपने प्रतापी स्वरूप के रूप में विराजमान हैं. स्थाकिल पर्वत का नाम ही वर्तमान में थलकेदार है.
5 किमी का कठिन ट्रैक
थलकेदार पहुंचने के लिए 5 किलोमीटर का ट्रैक करना होता है, शिखर पर मौजूद थलकेदार मंदिर से गढ़वाल, कुमाऊं और नेपाल के हिमालय का खूबसूरत दृश्य देखने को मिलता है, शिवरात्रि और सावन में यहां शिवभक्तों का मेला लगता है और लोग दूर-दूर से यहां प्राचीन शिवलिंग पर जल चढ़ाने पहुंचते हैं.
स्वयंभू शिवलिंग है मंदिर में स्थापित
यहां पिछले 8 साल से रहकर शिवधाम की सेवा करने वाले स्वामी वृतानन्द महाराज ने मंदिर की महिमा बताते हुए कहा कि सृष्टि की उत्पत्ति होने के साथ ही यहां धरती से निकला हुआ शिवलिंग मौजूद है. जो महादेव शिव के पवित्र स्थलों में से है. साथ ही उन्होंने बताया कि इतना धार्मिक महत्व रखने वाले इस पवित्र शिवधाम को भक्तों के आपसी सहयोग से भव्य रूप दिया गया है. यहां श्रद्धालुओं के लिए धर्मशाला भी है जहां भक्त रात्रि विश्राम भी कर सकते हैं.
क्या है लोगों की मांग?
थलकेदार में भगवान शिव के प्रहरी के रूप में उनके विशिष्ट गण लाटा देवता भी निवास करते हैं. जो यहां के लोगों के ईष्टदेव भी हैं. 6 पट्टी सोर पिथौरागढ़ के प्राचीनतम, केदारनाथ के बराबर महत्व रखने वाले थलकेदार मंदिर को मानसखण्ड कॉरिडोर में शामिल कर शिवधाम के रूप में विकसित करने की मांग भी यहां के लोग कर रहे हैं.