पाकिस्तान की ग्वादर को लेकर चीन पर दबाव बनाने की योजना नाकाम, चीन ने दिया जवाब….

इस्लामाबाद। पाकिस्तान ने एक बार फिर से सबके सामने अपनी फजीहत करा ली है। इस बार पाकिस्तान द्वारा चीन के साथ की गई हरकत ने उसे दुनिया के सामने शर्मिंदा कर दिया है।
आतंकवाद, गरीबी, महंगाई, धांधली वाले चुनाव, नागरिक अशांति, राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक बदहाली में घिरे देश ने अपनी हरकतों चीन को मजबूर करने की कोशिश की। जैसा कि कोई भी सही अनुमान लगा सकता है – इसका अंत अच्छा नहीं हुआ, इस्लामाबाद को एक बार फिर से मुंह की खानी पड़ी है।

पाकिस्तान की हरकत पर गुस्साया चीन
रिपोर्ट के मुताबिक, हाल ही में पाकिस्तान और चीन के बीच एक अहम बैठक हुई जिसमें ग्वादर बंदरगाह के इस्तेमाल और 'चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे' को लेकर बातचीत हुई। लेकिन पाकिस्तान ने इस मौके पर ऐसी चाल चली जिसने चीन को भौंचक्का कर दिया।

इस्लामाबाद ने कहा कि अगर चीन ग्वादर में सैन्य अड्डा बनाना चाहता है, तो उसे पाकिस्तान को सेकंड स्ट्राइक न्यूक्लियर क्षमता देनी होगी, ताकि ऐसा कर वह भारत के साथ बराबरी का सपना देख सके। लेकिन चीन ने इस मांग को बेतुका बताते हुए इसे सिरे से खारिज कर दिया और भविष्य की बातचीत को अनिश्चितकाल के लिए रोक दिया।

पाकिस्तान को मिला सबक
चीन के साथ कूटनीतिक और सैन्य वार्ता का टूटना पाकिस्तान के लिए अच्छा संकेत नहीं है, क्योंकि पैसों की कमी से जूझ रहा इस्लामाबाद बीजिंग से मिलने वाले आर्थिक सहायता पैकेजों पर बहुत अधिक निर्भर है।

चीन लंबे समय से पाकिस्तान की सेना के लिए भी एक रक्षक रहा है, जिसने उसे अधिकांश हथियार और गोला-बारूद की आपूर्ति की है। गोलियों से लेकर लड़ाकू विमानों तक सब कुछ उपलब्ध कराया है।

पाकिस्तान की सेना, जिसका अपने नागरिक सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों में हस्तक्षेप करने का इतिहास रहा है, वर्तमान में देश भर में बड़े पैमाने पर गुस्से और विरोध प्रदर्शनों के साथ संकट का सामना कर रही है, क्योंकि चुनावों में धांधली और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की कैद को लेकर देश भर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।

पाक-चीन संबंध हो रहे खराब
रिपोर्ट के अनुसार, सुरक्षा चिंताओं पर सार्वजनिक और निजी विवादों के साथ-साथ पाकिस्तान के अंदर एक सैन्य अड्डा बनाने की चीन की मांग के कारण पाकिस्तान-चीन संबंध खराब हो रहे हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, वर्गीकृत पाकिस्तानी सैन्य दस्तावेजों के अनुसार, इस्लामाबाद ने बीजिंग को आश्वासन दिया था कि उसे ग्वादर को चीनी सेना के लिए एक स्थायी आधार में बदलने की अनुमति दी जाएगी।

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