भोपाल . मप्र में कर्मचारी संघों की मनमानी और पदाधिकारियों की कारस्तानी पर सरकार अंकुश लगाने की तैयारी कर रही है। इसके लिए सरकार ने सख्त रूख अपनाने का फैसला किया है। इसके तहत सामान्य प्रशासन विभाग संगठनों की संपत्तियों की जानकारी एकत्रित कर रहा है। गौरतलब है कि प्रदेश में निजी स्वार्थों के लिए कर्मचारी संगठनों का गठन किया जा रहा है। इसको लेकर कर्मचारियों के बीच कलह भी बढ़ रही है।
उल्लेखनीय है कि कर्मचारी संगठनों का गठन कर्मचारियों के हितों के मद्देनजर किया जाता है। अपने निजी स्वार्थ की खातिर आपसी कलह में उलझते कर्मचारी संगठनों पर राज्य सरकार सख्त होने जा रही है। संगठनों के पास जिलों में कितनी संपत्तियां हैं। इसका ब्यौरा लेने की तैयारी हो रही है। इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग सक्रिय हुआ है। कहा जा रहा है कि इन विवादों और गुटबाजी का विपरीत असर शासकीय सेवा पर पड़ रहा है। कलेक्टरों से यह जानकारी मांगी जा रही है कि किस जिले में कर्मचारी संगठनों के कितने सरकारी आवासों में कार्यालय हैं। इनका क्या उपयोग हो रहा है। इसकी जानकारी भेजी जाए।
प्रदेश में 22 मान्यता प्राप्त कर्मचारी संगठन
गौरतलब है कि निरंतर विवादों के कारण हो रही शिकवा-शिकायतों को लेकर सामान्य प्रशासन विभाग यह चिंतित है। मध्य प्रदेश में 22 मान्यता प्राप्त कर्मचारी संगठन हैं। इनमें अधिकांश संघों को राज्य से लेकर ब्लॉक स्तर तक कार्यालय के रूप में शासकीय आवास आवंटन किए गए हैं। अब सरकार की दिक्कत है कि जिस कर्मचारी संघ में विवाद चल रहा है। उनके नेता निरंतर एक दूसरे की शिकवा शिकायत कर रहे हैं। कारण है कि दो-दो अध्यक्ष बने हुए हैं। नतीजतन संगठन की संपत्ति पर हर अध्यक्ष अपना अधिकार जताना चाह रहा है। इससे शासन की चिंता बढी है। मुख्य वजह यह है कि एक संगठन में दो-दो अध्यक्ष होने के कारण जहां सरकार की छवि खराब हो रही है। वहीं इसका सीधा असर शासकीय व्यवस्था पर पड़ रहा है। नेताओं के समर्थक कर्मचारी एक दूसरे पर सरकारी कार्यालयों में ड्यूटी के दौरान आरोप लगाते हैं। जिससे काम को गति नहीं मिल पा रही है।
विवादों का समाधान निकालने का प्रयास
जानकारी है कि कलेक्टरों ने भी शासन को यह सुझाव दिया है कि कर्मचारी संगठनों में उपजे आपसी विवादों का कोई सकारात्मक समाधान निकाला जाए। ताकि कार्यालयीन काम सुचारू गति से चल सके। गौरतलब है कि जिस तृतीय वर्ष शासकीय कर्मचारी संघ को दिवंगत कर्मचारी नेता सत्यनारायण तिवारी ने सींचकर समृद्ध बनाया था। उसकी आपसी कलह से मान्यता समाप्त की जा चुकी है। आज इसमें करोड़ों रुपए की संपत्ति पर भारी विवाद मचा हुआ है। संगठन में छिंदवाड़ा, बैतूल, होशंगाबाद, विदिशा, रायसेन, छतरपुर, डिंडोरी, मंडला, जबलपुर, इंदौर, ग्वालियर, छतरपुर सहित हर जिले में जिला से लेकर ब्लॉक स्तर तक सरकारी आवासों में कार्यालय संचालित हैं। कई जिलों में तो संगठन के कार्यालयों में दुकान किराए पर चल रही है। इसी को लेकर विवाद है। अब जिस गुट के पास इन कार्यालयों का कब्जा है।
एक संघ के कई अध्यक्ष
कर्मचारी नेता उमाशंकर तिवारी का कहना है कि यह सही है कि एक-एक संघ में दो-दो अध्यक्ष होंगे तो आपसी वैमनस्यता बड़ेगी। इससे जहां काम पर विपरीत असर पड़ रहा है। वहीं इसका सीधा फायदा सरकार और अधिकारी उठा रहे हैं। मौजूदा समय में सबसे ताकतवर और आरएसएस के अनुषांगिक सरकार समर्थित राज्य कर्मचारी संघ में भारतीय मजदूर संघ ने विवाद थाम लिया है। कारण है कि शुरुआती दौर से इस संगठन पर बीएमएस का नियत्रण संबद्धता के रूप में रहा है। इस संगठन में जितेंद्र सिंह, सुरेंद्र सिंह भदोरिया एवं हेमंत श्रीवास्तव के बीच लंबे समय से संघर्ष चल रहा था। तीनों ही अपने-अपने को लेटर हेड पर अध्यक्ष लिखते थे। इस विवाद की मान्यता समाप्त करने के लिए भी रजिस्टर फम्र्स सोसायटी सामान्य प्रशासन विभाग के निर्देश पर तैयारी कर चुका था। लेकिन जब बीएमएस ने हस्तक्षेप किया तो सभी नेता एकजुट हुए और नए सिरे से चुनाव करवा कर नई कार्यकारिणी बनाई गई है। मप्र लिपिक वर्गीय शासकीय कर्मचारी संघ प्रांताध्यक्ष एमपी द्विवेदी का कहना है कि तृतीय वर्ग शासकीय कर्मवीर संघ हर काम में पारदर्शिता जरूरी है। सभी संघों में एकजुटता जरूरी है। क्योंकि सरकार चाहती है कि कर्मचारी संघ आपस में विवादों में उलझते रहे। ताकि उनके मुद्दे अनसुलझे बने रहें।