इंदौर । इंदौर संभाग के पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड कचरा निष्पादन के संबंध में जनजागृति के प्रयास लगातार जारी हैं। इसी सिलसिले में जनसंवाद का सिलसिला भी जारी है। इसी क्रम में आज इंदौर के अरविन्दो अस्पताल के सभाकक्ष में जनसंवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस जनसंवाद कार्यक्रम में मेडिकल क्षेत्र के डॉक्टर्स, अन्य स्टाफ, विज्ञान विषय के प्रोफेसर तथा विशेषज्ञ आदि शामिल हुये। यह कार्यक्रम संभागायुक्त श्री दीपक सिंह की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम में धार जिले के कलेक्टर श्री प्रियंक मिश्रा, अपर कलेक्टर श्री गौरव बैनल, क्षेत्रीय प्रबंधक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड श्री एस.एन.द्विवेदी, अरविन्दो अस्पताल के डॉ. विनोद भण्डारी, मेडिकल कॉलेज इंदौर के पूर्व डीन डॉ. संजय दीक्षित, इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. पटेल सहित अन्य निजी चिकित्सालयों के डॉक्टर्स मौजूद थे। कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए संभागायुक्त श्री दीपक सिंह ने कहा कि यूनियन काबाईड कचरा निष्पादन के संबंध में फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिये लगातार प्रयास किये जा रहे हैं। समाज के हर वर्ग को यूनियन कार्बाइड के कचरे के निष्पादन की प्रक्रिया बतायी जा रही है। उनकी जिज्ञासाओं का समाधान किया जा रहा है। वैज्ञानिक और कानूनी तथ्यों से अवगत कराया जा रहा है। उन्होंने बताया कि कचरा निष्पादन की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी है। कार्यक्रम में श्री प्रियंक मिश्रा ने यूनियन कार्बाइड कचरा निष्पादन के संबंध में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने उपस्थितजनों की जिज्ञासाओं का संतुष्टि के साथ समाधान भी किया। उन्होंने बताया कि समाज के हर वर्ग के साथ जनसंवाद के कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। इसमें उन्हें पूरी प्रक्रिया समझायी जा रही है। उन्होंने कहा कि कचरा निष्पादन के संबंध में फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिये समाज के प्रबुद्धजनों को आगे आना चाहिये। उन्होंने कहा कि कचरा निष्पादन की पूरी प्रक्रिया वैज्ञानिक आधार पर है। कचरा निष्पादन में पूरी सावधानी एवं सुरक्षा बरती जायेगी। मानव जीवन के स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखा जायेगा। पर्यावरण की सुरक्षा पर भी विशेष ध्यान रहेगा। उनके द्वारा जनसंवाद कार्यक्रम में दी गई जानकारी निम्नानुसार है :-
यूनियन कार्बाइड का कचरा क्या है?
भोपाल गैस त्रासदी का कचरा पेस्टीसाईड का उत्पादन करने वाली यूनियन कॉर्बाइड फैक्ट्री के परिसर में रखा हुआ अवशेष है। इस कचरे में रासायनिक अवशेष हैं, जिसमें मुख्य रूप से 5 प्रकार के कचरे हैं:-
(1) परिसर की मिट्टी (2) रिएक्टर अवशेष (3) सेविन (कीटनाशक) अवशेष (4) नेफ्थाल अवशेष (5) सेमीप्रोसेस्ड अवशेष। भोपाल गैस त्रासदी लगभग 40 वर्ष पहले 1984 में घटित हुई थी। वैज्ञानिक प्रमाण अनुसार सेविन और नेफ्थॉल दोनों रसायनों का प्रभाव अब लगभग नगण्य हो चुका है। महत्वपूर्ण तथ्य यह है की वर्तमान में इस कचरे में मिथाइल-आइसोसाईनेट गैस का कोई अस्तित्व नहीं है और इसमें किसी प्रकार के रेडियोएक्टिव कण भी नहीं है।
इस कचरे को जलाना क्यों आवश्यक है?
किसी भी प्रकार के पेस्टीसाईड उद्योग से उत्पन्न होने वाला कचरा 'परिसंकटमय एवं अन्य अपशिष्ठ (प्रबंधन एवं सीमापार संचलन) नियम 2016' के अनुसूची-1 के अनुसार खतरनाक श्रेणी में आता है। यूनियन कार्बाइड का कचरा भी इसी श्रेणी में आता है। इसलिए इस कचरे का निष्पादन उक्त नियम में दी गयी विधि तथा वैज्ञानिक तरीके से किया जाना अनिवार्य है। क्योंकि उक्त कचरे में कार्बोनिक पदार्थ हैं, इसलिए उन्हें भस्मक (incinerator) में जलाना आवश्यक है।
इस कचरे को पीथमपुर में ही क्यों जलाया जा रहा है ?
भारत सरकार द्वारा बनाये गये नियम 'परिसंकटमय अपशिष्ठ (प्रबंधन एवं हथालन) नियम 1989' के अंतर्गत प्रत्येक राज्य को विभिन्न उद्योगों/संस्थानों से उत्पन्न होने वाले परिसंकटमय/ खतरनाक कचरे के निष्पादन (डिस्पोजल) हेतु एक ट्रीटमेंट स्टोरेज एंड डिस्पोजल फैसिलिटी (TSDF) का निर्माण करना होता है। मध्य प्रदेश में पीथमपुर में ही सबसे ज्यादा उद्योग होने के कारण और अपशिष्ठ की मात्रा भी अधिक होने की वजह से उक्त साईट का निर्माण पीथमपुर में किया गया है, जो Pithampur Industrial Waste Management Pvt. Ltd के नाम से संचालित है। यह भी ज्ञात होना जरूरी है कि राज्य में केवल एक ही डिस्पोजल साईट (TSDF) पीथमपुर में है और इसी कारण से अपशिष्ठ का निष्पादन पीथमपुर में किये जाने हेतु माननीय उच्चतम न्यायालय एवं माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा निर्देश दिये गये हैं।
पीथमपुर प्लांट में कचरे को जलाने के लिये किस प्रकार की सुविधाएं हैं ?
प्लांट में अंतरराष्ट्रीय मानक का भस्मक और वैज्ञानिक पद्धति से निर्मित सिक्योर्ड लैंडफिल (Landfill) की व्यवस्था है। इसका प्रमाण केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा किया गया है, जिसको माननीय उच्चतम न्यायालय एवं माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर ने भी स्वीकार किया है। कचरे को वैज्ञानिक रूप से जलाने के लिए निम्नानुसार व्यवस्था है: भस्मक में प्राथमिक दहन कक्ष, द्वितीय दहन कक्ष और गैसों के ट्रीटमेंट हेतु वायु प्रदूषण नियंत्रण व्यवस्थाएँ स्थापित हैं। कचरे को प्राथमिक दहन कक्ष में 850 डिग्री तापमान पर जलाया जायेगा, जिससे कचरे की राख नीचे चेंबर में एकत्रित होगी। फ्लू गैस आगे द्वितीयक दहन कक्ष में जायेगी, जहां का तापमान 1200 डिग्री रहता है, वहां गैस में जो भी बचे हुए पदार्थ होंगे वे पूर्णतः जल जायेंगे। इसके पश्चात आगे मात्र फ्लू गैस जायेगी, जिसके उपचार हेतु वायु प्रदूषण नियंत्रण अथवा गैस के उपचार हेतु सम्पूर्ण व्यवस्थाएं स्थापित हैं। गैस के उपचार हेतु उपकरण स्प्रे ड्रॉयर, मल्टी साँयकलॉन, डॉय स्क्रबर, बैग फिल्टर, वेट स्क्रबर मौजूद है। इन उपकरणों से उपचार पश्चात् फ्लू गैस 35 मीटर ऊंची चिमनी के माध्यम से उत्सर्जित होगी। चिमनी से उत्सर्जित होने वाली फ्लू गैस में गैस अथवा ठोस कण निर्धारित मानकसीमा के भीतर रहते हैं। फ्लू गैस से होने वाले उत्सर्जन के निरन्तर मापन हेतु ऑनलाईन उत्सर्जन मॉनिटरिंग सिस्टम भी स्थापित हैं, जो केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, म.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास उपलब्ध रहते हैं तथा प्लांट के मुख्य द्वार पर लगे डिस्प्ले बोर्ड पर प्रदर्शित होते हैं। इस प्रकार भस्मक में यूनियन कॉर्बाईड के अपशिष्ठ जलाने हेतु पर्याप्त सुविधा उपलब्ध है।
क्या 2015 में इस कचरे को सैंपल के रूप में जलाया गया था? उसके क्या परिणाम थे?
वर्ष 2015 में माननीय न्यायालय के निर्देश पर भोपाल गैस त्रासदी के 10 टन कचरे को पीथमपुर प्लांट में सैंपल के रूप में लाकर जलाया गया था। जिससे यह पता चल सके कि क्या यह प्लांट कचरे को जलाने के लिए उपयुक्त है और जलाने की प्रक्रिया में किस प्रकार की गैस / पदार्थ निकलेंगे? सैंपल कचरे की रिपोर्ट समाधानकारक होने के कारण ही न्यायालय ने पूरे कचरे को पीथमपुर प्लांट में जलाने का निर्देश दिया है।
कचरे को जलाने में कौन सी गैस अथवा पदार्थ निकलते हैं ?
वर्ष 2015 में जलाये गए कचरे की वैज्ञानिक रिपोर्ट भारत के सर्वोच्च वैज्ञानिक संस्थान जैसे नीरी (NEERI), IICT, NGRI के मार्गदर्शन में बनायी गयी थी और इस रिपोर्ट को सर्वोच्च न्यायलय ने भी माना है। इसलिए इस रिपोर्ट पर आमजन पूर्ण रूप से विश्वास करें। इस रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष निम्नानुसार है: कचरा जलाने पर चिमनी से उत्सर्जन होने वाले फ्लू गैस में ठोस कण, हाईड्रोजन क्लोराईड गैस, सल्फर डाई ऑक्साईड गैस, कार्बन मोनो ऑक्साईड गैस, कॉर्बन डाई ऑक्साईड गैस, हाईड्रोजन फ्लोराईड गैस, नाईट्रोजन के ऑक्साईड्स, डायक्सिन एवं फ्यूरॉन गैसेस का उत्सर्जन हुआ, किन्तु इन सभी की मात्रा निर्धारित मानक सीमा से काफी कम पाई गयी इसके अतिरिक्त कैडमियम, थैलियम, मर्करी, स्ट्रॉन्शियम, आर्सेनिक, जैसे पदार्थ का उत्सर्जन भी निर्धारित मानक सीमा से अत्यंत कम पाया गया। उक्त रिपोर्ट से यह समाधान होता है की जब पूरा कचरा जलाया जाएगा तब भी चिमनी से निकलने वाली सभी गैस / पदार्थ मानक सीमा से कम निकलेंगे और इनका पर्यावरण/स्वास्थ्य पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा।
कचरा जलाने से पर्यावरण और आमजन के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
वर्ष 2015 में किये गये ट्रॉयल रन के परिणामों के अनुसार चिमनी से होने वाले उत्सर्जन में समस्त प्रदूषक निर्धारित मानक सीमा से काफी कम मात्रा में पाये गये थे। कचरा जलने की प्रक्रिया में प्लांट से किसी भी प्रकार का जल/ तरल पदार्थ नहीं निकलेगा अर्थात कचरे निष्पादन की पूरी प्रक्रिया zero discharge पर आधारित है। कचरा जलने से आमजन के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा।
क्या अवशेष को सुरक्षित रूप से दफनाया जायेगा ?
दहन प्रक्रिया से उत्पन्न होने वाले अवशेषों को सिक्योर्ड लैंडफिल (Landfill) में सुरक्षित तरीके से दफनाया जायेगा। इस अवशेष का एक कण भी भू जल में प्रवेश नहीं करेगा।
कचरा जलाने की मॉनिटरिंग किस प्रकार की जायेगी? आम जन से इस जानकारी को कैसे साझा किया जाएगा ?
कचरा जलाने की मॉनिटरिंग केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, म.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा की जायेगी। चिमनी से निकलने वाली फ्लू गैसेस की जांच हेतु ऑनलाईन सतत् उत्सर्जन मॉनिटरिंग सिस्टम स्थापित है, जिससे प्रदूषकों की जांच ऑनलाईन होगी। प्लांट के आस पास पूरे क्षेत्र में भी जल वायु की निरंतर मॉनिटरिंग की जाएगी। प्लांट परिसर के मुख्य गेट के पास डिस्प्ले बोर्ड स्थापित है, जिसमें अपशिष्ठों की मात्रा एवं दहन प्रक्रिया से उत्सर्जित होने वाली गैसों/पदार्थ की जानकारी प्रदर्शित होगी। प्लांट के मुख्य गेट पर लगे ऑनलाईन डिस्प्ले बोर्ड को आमजन भी देख सकेगे।
क्या कचरा जलाने का असर कई वर्षों बाद होना संभव है ? इसकी मॉनिटरिंग कैसे की जाएगी?
नहीं, कचरा जलाने का जलवायु और आमजन के स्वास्थ्य पर कई वर्षों बाद भी कोई असर नहीं पड़ेगा। इसके पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध हैं। इसको सुनिश्चित करने के लिए कचरा जलाने के बाद भी निरंतर रूप से जल वायु की गुणवत्ता जांच प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा की जाएगी। यह जानकरी आमजन से भी साझा की जाएगी।