कभी देश में प्रमुख विपक्षी दल रही रही कम्युनिस्ट पार्टी के लिए अब अस्तित्व बचाना कठिन हो रहा है।
सीटें घटने से वाम दल राष्ट्रीय राजनीति में भी अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। गठबंधन में होने के बावजूद इस चुनाव में चार वामदल महज आठ सीटें ही जीत पाए।
यहां तक कि अपने परंपरागत गढ़ केरल, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में भी उनका प्रदर्शन बेहद खराब रहा है।
आजादी के बाद कम्युनिस्ट पार्टी तीन चुनावों तक प्रमुख विपक्षी दल के रूप में रही। उसके बाद हुए चुनावों में भी वह कभी तीसरे तो कभी चौथे बड़े राजनीतिक दल के रूप में रही।
हालांकि इस बीच कम्युनिस्ट पार्टी में टूट हुई और नए दल भी बने। यह सिलसिला 2004 तक जारी रहा। उसके बाद पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकार का सफाया हुआ तो संसद में भी उनका प्रतिनिधित्व कम होता गया।
केरल में बड़ा झटका
केरल में माकपा के नेतृत्व में अभी भी वामदलों की सरकार है लेकिन इसके बावजूद वहां माकपा महज एक सीट ही जीत पाई।
पिछले चुनाव में भी एक ही सीट जीती थी। हालांकि वहां माकपा का मत प्रतिशत 25.82 रहा। जबकि भाकपा को 6.14 फीसदी मत मिले।
कुल 32 फीसदी वोट हासिल करने के बावजूद वाम दल महज एक सीट ही जीत पाए। पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में कोई सीट नहीं मिली। पश्चिम बंगाल में वाम दलों को छह तथा त्रिपुरा में करीब 12 फीसदी वोट मिले।
तमिलनाडु में माकपा और भाकपा ने इंडिया गठबंधन के साथ चुनाव लड़ा और दो-दो सीटें जीतीं। एक सीट वह राजस्थान में जीतने में कामयाब रही।
जबकि गठबंधन में बिहार में दो सीट भाकपा-माले जीतने में जीतने में कामयाब रहा। इस प्रकार कुल आठ सीटें वाम दलों के खाते में गई जो पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में दो सीट अधिक है। लेकिन जिस प्रकार से विपक्ष का प्रदर्शन इस बार बेहतर हुआ है, उसके मद्देनजर यह कम है।
2004 में वाम दलों ने किया था शानदार प्रदर्शन
2004 के चुनावों में वाम दलों ने शानदार प्रदर्शन किया था और यूपीए सरकार का हिस्सा बने थे। तब देश में कांग्रेस, भाजपा के बाद माकपा तीसरे बड़े दल के रूप में सामने आई थी।
माकपा ने 43, भाकपा ने 10, आरएसपी और फारवर्ड ब्लाक ने तीन-तीन सीटें जीती थीं। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि 2004 में यूपीए सरकार में शामिल होकर कांग्रेस के साथ खड़े होने से वामदलों को नुकसान हुआ। नतीजा यह हुआ कि 2009 में उनकी सीटें 24, 2014 में 11 तथा 2019 में महज छह रह गई।
केरल में कांग्रेस गठबंधन के साथ-साथ भाजपा के बढ़ने से वामदलों को नुकसान हो रहा है। केरल में भाजपा हिन्दू मतों को अपनी तरफ खींच रही है।
पश्चिम बंगाल में वामदलों का मत भाजपा और तृणमूल की तरफ चला गया है। करीब यही हाल त्रिपुरा का है।
संसद में वामदलों की उपस्थिति कम होने से मजदूरों, वंचितों के हक की लड़ाई कमजोर होती दिखती है। संसद में वाम दलों की मजबूत उपस्थिति नीति निर्माण में एक दबाव समूह का कार्य करती थी।
यही कारण है कि मौजूदा आर्थिक नीतियों के खराब प्रभावों के खिलाफ भी संसद में आवाजें कमजोर हुई हैं।
वाम दलों का मत प्रतिशत
2004 7.85
2009 7.46
2014 4.55
2019 2.46
2024 2.54
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